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________________ पद्मनाभस्वामी की विशाल भव्य मूर्ति मूलनायक के रुप में आसीन है। यहाँ हजारों भाविक यात्री चारों और से दर्शन वंदनार्थ आते रहते हैं । भविष्य में होने वाले पद्मनाभस्वामी भगवान का ( श्रेणिक का) यह जीव वर्तमानकाल में नरक में क्या करता होगा ? यद्यपि नरक में अशुभ पापकर्म का दंड ही भुगतना होता है, परन्तु क्षायिक सम्यक्त्व के स्वामी ऐसी महान आत्माएँ अपने सम्यक्त्व के आधारस्तंभ नवकार महामंत्र का स्मरण करते रहते हैं, क्योंकि सामायिक, पूजा, प्रतिक्रमण, पौषध, उपवास, आयंबिल आदि व्रत विरति-तप-त्याग के पच्चक्खाण वाला धर्म तो नरक गति में होता ही नहीं है, अतः नरक गति में नवकार महामंत्र की आराधना ही एक मात्र ऐसी आराधना है, जो सुलभ होती है, सरल होती है और सतत हो सकती है। अतः नरक में नवकार की आराधना अनेक जीव करते रहते हैं । नरक के असंख्य जीवों में तो ऐसे अनेक नारकी जीव होते हैं जो भले ही कदाचित क्षायिक सम्यक्त्वधारी न हों, परन्तु क्षायोपशमिकादि सम्यक्त्वयुक्त होते हैं, परन्तु क्या किया जाए घोर पाप कर्म करने के कारण उन्हें नरकगति में गमन करना पडा । उदाहरण के लिये भगवान महावीरस्वामी का जीव १८ वे त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में था, तब शय्यापालक के कान में ऊष्ण-तपाया हुआ सीसा डलवाने के कारण घोर पापकर्मबंध किया था, और उसके कारण उन्हें १९ वे भव में सातवी नरक में जाना पडा । वहाँ उन्होंने ३३ सागरोपम का उत्कृष्ट आयुष्य भोगा, और वहाँ से निकलकर २० वे भव में तिर्यंचगति में सिंह का भव करके पुनः २१ वे भव में चौथी नरक में गए। उन्होंने दो भव नरक में नारक के रुप में पूर्ण किये और इतने लंबे दीर्घ काल के आयुष्य भोगे । क्या उन्होंने नरक गति में नारक के भव में नवकार महामंत्र की आराधना नहीं की होगी ? उन्होंने अनेक बार नवकार महामंत्र गिना होगा, इसका जाप किया होगा, क्योंकि उन्होंने नयसार के भव से ही सम्यक्त्व प्राप्त कर रखा था। इसी प्रकार नरक में तो असंख्य जीव है, जिन में सम्यक्त्वधारी जीव भी अनेक होंगे। नरक गति में सभी जीव विभंगज्ञानी होते हैं। तीसरा अवधिज्ञान तो वहाँ जन्मजात होता है, अतः वे जीव अपने पूर्वभव की वस्तुस्थिती आदि सब कुछ जान सकते हैं। इस प्रकार भी पूर्वभव का सब कुछ स्मृति में आ जाता है। नवकार महामंत्र के ज्ञान का उन्हें ध्यान आ जाता है और फिर श्रद्धापूर्वक वे नवकार महामंत्रादि का जापादि आराधना करते रहते हैं। - 29
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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