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________________ तो भी ... यह मेल कैसे बैठेगा ? 'जावंति चेइआई' सूत्र पाठ के अनुसार जहाँजहाँ जिन प्रतिमा-मूर्तियाँ हैं उन सभी को मैं नमस्कार करता हूं - यही अर्थ ठीक बैठता है, परन्तु यदि 'चेइआई' का अर्थ ज्ञान करते हैं तो किसी भी रुप से ठीक नहीं उतरता, क्यों कि ज्ञान गुण है गुण-गुणी के बिना स्वतंत्र नहीं रह सकता - यह शाश्वत नियम है । गुण सदा गुणी में ही रहता है । फिर उर्ध्वलोक अथवा पाताल लोक में ज्ञान कैसे लें ? कौन सा ज्ञान लेना ? क्या स्वर्ग या पाताल में केवलज्ञान है ? क्या उसे नमस्कार करते हैं ? नहीं, संभव ही नहीं है । अतः चैत्य शब्द का निरर्थक विपर्यास करके स्वयं अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन क्यों करते हैं ? चलो, चैत्य शब्द को बदल डालोगे ? परन्तु मंदिरमार्गियों के पास शास्त्र पाठ के आधार पर कई शब्द हैं जैसे मूर्ति, प्रतिमा, बिंव, पडिमा, आदि आप कितने शब्दों के अर्थ बदलोगे ? आवश्यक सूत्र की और एक गाथा देखें - जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए । जाइं जिणबिंबाइं ताई सव्वाइं वंदामि ।। सभी भाव पूर्व की 'जावंति चेइआइं' गाथा के जैसे ही हैं । मात्र चैत्य शब्द • स्थान पर 'बिंब' शब्द का प्रयोग किया है । सग्गे - स्वर्ग में, पायालि-पातालअधालोक में, और माणुसे लोए - मनुष्यलोक में - इन तीनों लोक में जो जो नामस्वरुप भी तीर्थ हैं और वहाँ जिनबिंब हैं अर्थात् मूर्तिया-प्रतिमाएँ हैं, उन सब को मैं वन्दन करता हूँ । यहाँ चैत्य शब्द के स्थान पर 'बिंब' शब्द है । चैत्य शब्द का अर्थ बदल डाला, परन्तु अब बिंब शब्द का अर्थ कैसे बदलोगे ? अतः त्रिलोक में शाश्वत जिनबिंब हैं - प्रतिमाएँ है उन सभी को वंदन किया गया है । जिनमंदिर और मूर्तियाँ - जैन दर्शन अत्यन्त प्राचीन और ऐतिहासिक दर्शन है । इसकी प्राचीनता के प्रमाण स्वरुप जिनमूर्ति और जिनमंदिर हैं । हजारों वर्षों के प्राचीन मंदिर और मूर्तियाँ वर्तमान में मौजूद है और खनन कार्य में आज भी उपलब्ध होते हैं, जो प्राचीनता को सिद्ध करते हैं । ऐसी अमूल्य निधि को सर्वथा छोडकर अलगाववादी मूर्ति के विरोधिओं ने कुछ भी प्राप्त नहीं किया । जिनेश्वर भगवान की मूर्ति अथवा मंदिर के सिवाय उनके फोटो या चित्र कुछ भी प्राप्त नहीं हुए हैं, अतः मूर्ति के विरोधिओं ने खोया ही है, अपनी निधि से हाथ धोए ही है और अपना अधिकार भी खोया है । 447
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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