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नहीं रहेगा क्योंकि समझ में आए ऐसा स्पष्ट है कि नामकर्म जन्य शरीर, तीर्थंकरपन, अंगोपांग, संघयण संस्थान है - ये सभी नाम कर्म के आधार पर टिके हुए हैं अतः नाम कर्म कैसे खिसक सकता है ? जहाँ तक आयुष्य कर्म रहेगा वहाँ तक नाम कर्म भी रहेगा ही परन्तु इसके रहने पर भी कोई हानि नहीं है, बल्कि लाभकारी ही है, शुभ पुण्य प्रकृतियाँ ही रहती है, अशुभ तो रहती ही नहीं है ।
इसी प्रकार गोत्र कर्म है । इसके आधार पर जाति-कुल आदि जो निर्मित है वे कहाँ से नष्ट होंगे ? शरीरधारी के रूप में जीव जीवित रहेगा वहाँ तक जातिकुल आदि जो उच्च हैं वे कहाँ नष्ट होने वाले हैं ? होने ही नहीं पाएँगे । शाता वेदनीय और अशाता वेदनीय कर्म है इसके कारण सुख और दुःख रूपी दोनों ही संवेदनाओं का अनुभव होता ही रहेगा, तब भी कोई कष्ट नहीं है । ये सभी अघाति कर्म हैं जिनका अधिकतम प्रभाव शरीर संबंधी है जब कि मूल कर्म तो घाति कर्म ही कहे गए हैं, वे ही आत्मा के मूलभूत गुणों का सीधा घात करनेवाले हैं अतः इन चार घाति कर्मों का नाश करना अनिवार्य है । अघाति कर्म भले ही पडे रहे तब भी चलेगा । वे तो आयुष्य के आधार पर टिके हुए हैं, अन्त में एक फूंक मारने के साथ ही समाप्त हो जाएंगे, अतः अघाति कर्म होते हुए भी तीर्थकरत्व उदय में आता है । अरिहंत कहलाएँ तब भी कोई दोष नहीं है । ४ घाति कर्मों का दोष होने के साथ ही अन्य ४ अघाति कर्म के, रहने पर भी तीर्थंकर नामकर्म का उदय हो जाता है । रसोदय विपाकोदय हो जाता है । इस प्रकार भगवान के तीर्थ प्रवर्तन आदि सभी कार्य रहते ही हैं, वे भी करते ही हैं । यदि ४ अघाति कर्म भी नष्ट हो जाएँ तो फिर जिननामकर्म आदि कहाँ जाएँ ? और ये यदि नष्ट हो जाएंगे तो वे तीर्थंकर कैसे बन पाएँगे ? अतः अरिहंत कहने में भी कोई भी दोष नहीं रहता ।
___ भगवान महावीरस्वामी का कुल आयुष्यकाल ७२ वर्ष का था । इनमें ३० वर्ष की आयु में दीक्षा ली और ४२ वे वर्ष में ४ घातिकर्मों का क्षय करके केवलज्ञानी और वितरागी बने । उस समय तीर्थंकर नामकर्म का रसोदय विपाकोदय हुआ । भगवान तीर्थंकर बनकर धर्मतीर्थ की स्थापना करते हैं। अभी तो घातिकर्म नष्ट हुए और शेष ४ अघाति कर्म सत्ता में पड़े हैं । वे भी ३० वर्ष तक रहेंगे, क्योंकि ३० वर्ष का आयुष्य कर्म शेष था । इस काल में प्रभु महावीर अरिहंत - तीर्थंकर ही कहलाए । यह जिस प्रकार महावीर के संबंध में घटित होता है, उसी प्रकार सभी तीर्थंकर अरिहंतो में घटित होगा । यही प्रक्रिया है, क्यों कि एक साथ आठों ही कर्मों का क्षय हो जाए तो फिर देह छूट जाएगा और जीव निर्वाण प्राप्त कर मोक्ष में चला
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