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________________ मातुश्री के पास लाकर रख देते हैं । इससे पूर्व प्रतिबिंब का संहरण कर लेते हैं माता और प्रभु को वंदन नमस्कार करके इन्द्र विदा होते हैं। तत्पश्चात् देवतागण नंदीश्वर द्विप पर जाकर अष्टालिका महोत्सव आदि करके स्वर्गगमन करते हैं । राजकुल में जन्मोत्सव . सिद्धार्थ राजा के पास आकर प्रियंवदा दासी ने पुत्रजन्म की शुभ बधाई दी। पुत्रजन्म के शुभ समाचार सुनकर राजा, प्रधान, मंत्री एवं समस्त प्रजाजन हर्षविभोर हो उठे । राजा के आदेश से बन्दीगृह में से अपराधियों को मुक्त करते हैं। सभी के पुराने कर (tax) आदि माफ करते हैं । राजप्रासाद तथा समस्त राज्यादि में स्वच्छतादि करवाने के पश्चात नृत्य-गान आदि आनंदोत्सव आयोजित करते हैं । चारों ओर नृत्य-गान चलते हैं राजा सभी लागों को यथेच्छ दान देते हैं। पुत्रजन्म की शहनाईया बजती है, बारह दिन तक राजप्रासाद में जन्मोत्सव मनाया जाता है, सभी ज्ञातिबन्धु एकत्रित होते हैं राजा व रानी सभी के समक्ष पुत्र के नामकरण की विधि करते हैं, । शुभ संकेत शुभ स्वप्नो और शुभ प्रसंग अथवा शुभ घटना के आधार पर बालक का नामकरण किया जाता है। द्वितीया का चन्द्रमा जिस प्रकार प्रतिदिन विकसित होता है, उसी प्रकार बाल्यावस्था में प्रतिदिन प्रभु की अभिवृद्धि होती है। शालागमन आमल की क्रिडा आदि खेल खेलते हुए प्रभु धैर्यभाव से रहेते हैं। माता पिता अवसर आने पर प्रभुजी को अध्ययन हेतु पाठशाला में प्रविष्ट करवाते हैं यद्यपि परमात्मा जन्म से ही मति -श्रुत-अवधि नामक तीनो ज्ञान से युक्त होते हैं, अतः उन्हे पाठशाला में भेजने की कोई आवश्यकता ही नही रहती हैं, फिर भी लौकिक व्यवहार से और पुत्र स्नेहवश माता-पिता उचित समय पर आमोद-प्रमोद के साथ प्रभुजी का पाठशाला में अध्ययन हेतु प्रवेश करवाते हैं । वास्तव में सभी तीर्थंकरो के माता-पिता इस तरह करते नहीं है, परन्तु विशेष रुप से महावीर प्रभु के माता-पिता ने ऐसा किया था, अतः यह पद्धति लोकव्यवहार में चलती है। प्रभु महावीर को जब पाठशाला में बिठाये तब इन्द्र महाराजा खुद ब्राह्मण पण्डित के रुप में आते हैं और अध्ययन करानेवाले पंडितो को भी नहीं आते हैं ऐसे जटिल प्रश्न प्रभु महावीर को पूछते हैं और प्रभु के मुख से उत्तरो 403
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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