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नहीं है। इस प्रकार अनंत कालचक्र भूतकाल में बीत गए है, तो इन अनंत कालचक्रों में चौबीश चौबीस तीर्थंकर भगवंतों की कितनी चौबीशियाँ हुई होंगी? एक कालचक्र में दो चौबीशियाँ होती है। इस प्रकार अनंत कालचक्र में अनंत x२ = अनंत ही होती है। इस प्रकार विगत काल में अनंत चौबीशियाँ हो चुकी है। एक-एक चौबीशी में २४-२४ तीर्थंकर भगवंत हो चुके हैं, तो अनंत चौबीशियाँ में मिलकर कितने तीर्थंकर भगवंत हुए? अनंत x २४ अनंतानंत अरिहंत भगवंत हो चुके हैं ।
वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीशी में आदीश्वर भगवान से लगाकर चौबीशवे श्री महावीर स्वामी भगवान तक के चौबीश तीर्थंकर भगवंतो के समय में प्रत्येक समय यही नवकार ऐसा ही नवकार महामंत्र इसी प्रकार उच्चारित था । नवकार महामंत्र में कभी किसी प्रकार का बदलाव नहीं आया। इसी प्रकार का था, क्योंकि ऐसे ही अरिहंत भगवंत विगत चौबीशी में भी हुए हैं। अरिहंत- अरिहंत में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं होती है । अतः उस उस समय में " नमो अरिहंताण” इसी प्रकार बोला जाता था । अतः नवकार मंत्र कितना पुराना और प्राचीन है ? इस प्रश्न के उत्तर में इतना ही कहना पडता है कि जब से चौबीशियाँ है, तभी से यह नवकार महामंत्र भी है, अतः नवकार महामंत्र का अस्तित्व अनंतकाल का हो गया।
धर्म और नवकार की अनादि अनंतता
आदि अर्थात् शुरुआत - प्रारंभ, न आदि इति अनादि । जिसकी आदि दिखाई
न दे वह अनादि । कब से शुरुआत हुई है ? इसका प्रथम छोर कहाँ है? कब से है
इसका पता नही चलता है अतः यह अनादि कहलाता है। इस प्रकार भूतकाल में दृष्टिपात करने पर बात स्पष्ट हो जाती है कि भूतकाल में अनंत चौबीशियाँ हो चुकी है, और इसके आधार पर स्पष्ट होता है कि कालचक्र भी अनंत व्यतीत हो चुके हैं और कालचक्रों तक ही संसार सीमित नहीं है। अनंत कालचक्रों को जैन शास्त्रो में एक पुद्गल परावर्त नामक संज्ञा दी गई है। ऐसे अनंत पुद्गल परावर्त व्यतीत हो चुके हैं । इस प्रकार संसार अनंत पुद्गल परावर्तकाल जितना पुराना और प्राचीन है। एक सागरोपम के समान ही असंख्य वर्ष होते हों तो एक कालचक्र के २० कोटा कोटी सागरोपम x असंख्य असंख्य वर्ष हुए और ऐसे अनंत कालचक्र व्यतीत हो चुके हो तब उनके कुल कितने वर्ष हुए? अनंत कालचक्रो में अनंतानंत वर्ष व्यतीत हो गए। जब इतने अनंतानंत वर्षों का काल भूतकाल में व्यतीत
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