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________________ तीर्थंकर नाम निकाचता' पवित्र शुभअध्यवसाय के भावों में वे तीर्थंकर नाम कर्म निकाचित करते हैं और शेष आयुष्य पूर्ण करके मृत्यु लोक प्राप्तकर स्वर्ग में सिधारते हैं । 'वच मां एक देव नो भव करी -' बीच में देवका एक भव करते हैं और फिर अन्तिम भव में तीर्थंकर बनते हैं । तीर्थंकर बनने की यह प्रक्रिया है । यही राज मार्ग है । इसी प्रकार तीर्थंकर बनना शक्य है । __ वर्तमान काल में भी हजारों पुण्यात्माएँ बीस स्थानक तप करने वाले हैं - अनेक कर भी रहे हैं । यह मार्ग सच्चा है - इस में कहीं भी दो मत नहीं हैं, परन्तु दूध में शक्कर का ही अभाव है । बीस स्थानक की आराधना के साथ साथ “सवि जीव करूँ शासन रसी” की भाव दया का चिन्तन करने की भावना जागृत नहीं होती है । यह भावना से भावित नहीं कर पाते हैं । भावना में कहाँ पैसे खर्च होते हैं ? एक भी पैसा नहीं लगता फिर भी मन में इतने उदार भाव पैदा नहीं होते हैं और जगत के सभी जीवों के कल्याण की भावना जागृत नहीं होती हैं । मनः संतोष के खातिर बीस स्थानकों की आराधना हो जाती है, परन्तु भावना से वंचित रहने वाले तीर्थंकर नाम कर्म बाँधने में असमर्थ रहते हैं । अतः बाह्य तौर पर बीस स्थानक तप की आराधना और आभ्यंतर कक्षा में सभी जीवों को शासन रसिक बनाने की भाव दया की भावना - ये दोनों ही आवश्यक हैं, तभी तीर्थकर नाम कर्म निकाचित होगा और तभी भविष्य में तीर्थंकर बनना संभव होगा । भावी में तीर्थंकर बनने के लिये वर्तमान में इस बीस स्थानक की आराधना आदि पूर्वक तीर्थंकर नाम कर्म बाँधना अर्थांत तीर्थकर बनने के लिये Reservation आरक्षण करवाना हैं । अब आईये भावी चौबीसी का विचार करें । आगामी चौबीसी की २४ पुण्यात्माएँ - एक के पश्चात् एक इस प्रकार चौबीसियाँ तो होती ही रहेगी । आगे चौवीशी हुइ अनन्ती, वली रे होशे वार अनन्ती । नवकार तणी कोई आदि न जाणे, एम भाखे अरिहंत रे ॥ भूतकाल में अनन्त चौबीसियाँ हो चुकी हैं और भावी में भी अनंत चौबीसियाँ होने वाली ही हैं, अतः नवकार की कोई आदि नहीं जानता, ऐसा स्वयं अरिहंत भगवान फरमाते हैं । इस प्रकार चौबीसियों का क्रम चलता ही रहता है। यह वर्तमान चौबीसी जो श्री आदीश्वर भगवान से २४ वे श्री महावीर स्वामी भगवान तक हुई है, इस में अनेक पुण्यात्माओं ने बीस स्थानक तप पूर्वक भावना 392
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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