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________________ 1 बन पाती और मातृ सुख से वंचित रहती हैं । मातृत्व प्राप्त करने की उसकी इच्छा सदा अतृप्त ही - अपूर्ण ही रहती है । बस, ठीक ऐसी ही बात अभव्यात्माओं की है । अभव्यों में भी जाति स्वभाव से ही देव - गुरु- धर्मादि सभी साधन सामग्रियाँ आदि प्राप्त होने पर भी कदापि अनंतकाल में भी सम्यग्दर्शन - सच्ची श्रद्धा की जागृति नहीं होती । ऐसे जीव मोक्ष प्राप्ति में सर्वथा - सर्वदा असमर्थ ही रहते हैं । इसीलिये मोक्ष की सत्ता अथवा सिद्धों का स्वरुप भी स्वीकार करने के लिये वे तैयार नहीं होते । - तीसरे स्थान पर आती है - साध्वी स्त्री । जिसे स्त्री देह में नारी जाति की दृष्टि से देखें तो पता चलेगा कि तीनों ही स्त्रियाँ ही कहलाती हैं । स्त्री स्वरुप में तीनों ही एक जैसी सद्दश ही कहलाएँगी । इस कुमारिका में संतान को जन्म देने आदि की संपूर्ण योग्यता है, मातृत्व धारण करने की भी योग्यता हैं, परन्तु कौमार्यावस्था में ही दीक्षा ग्रहण कर लेती है, साध्वी बन जाती है, आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का पच्चक्खाण स्वीकार कर लेती है । अतः कभी भी शादि अथवा पति संसर्गादि की सहयोगी साधन सामग्री प्राप्त ही नहीं होने वाली है, अतः वह कभी भी माता बनने वाली नहीं है । बस, ठीक ऐसे ही जाति भव्य प्रकार के जीव कहलाते हैं । वे भव्य की जाति के हैं, इसे हम नहीं नकारते, परन्तु उन्हें एकेन्द्रिय पर्याय से कभी भी आगे बढ़ने की अनुकूलता ही प्राप्त नहीं होती और न उन्हें देव - गुरु- धर्मादि साधन सामग्रियों की ही उपलब्धि होने वाली है अतः वे कभी भी श्रद्धा आदि प्राप्त नहीं कर सकते और न सिद्ध ही बन सकते हैं । 367
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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