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सिद्ध भी बन जाए ।
जाति भव्य जीव :
जाति भव्य अभव्य कक्षा के नहीं होते, परन्तु तथाप्रकार के कर्म संयोगों में हैं कि जीव एकेन्द्रियादि पर्यायों से बाहर निकल ही नहीं पाएँगें । वे कभी भी आगे प्रगति नहीं कर सकेंगे और उन्हें देव गुरु धर्म की साधन सामग्री ही प्राप्त होने वाली नहीं है । तो क्या करते हैं? वहीं पड़े रहेंगे । भव्य की जाति के होने पर भी उनके लिये भव्यत्व दुर्लभ हो गया हैं, जिसके कारण वे जाति भव्य कहलाते हैं । • सिद्ध बनने का भी उनके लिय कोई प्रश्न ही नहीं खडा होता है, न उनके लिये सिद्धों की सत्ता अथवा मोक्ष का अस्तित्व ही स्वीकार करने का भी प्रश्न उठता
उपमा के उदाहरण से स्पष्टीकरण :
उपरोक्त तीनों प्रकार समझने के लिए उपमा के ये उदाहरण लाभकारी रहेंगे। एक पुत्र को जन्म देने की योग्यता रखनेवाली स्त्री जैसे हैं, दूसरे बाँझ स्त्री जैसे हैं और तीसरे साध्वी स्त्री जैसे हैं । भव्यात्मा कुमारिका स्त्री जैसे होते हैं, जो कि वर्तमान में कुमारिका तो हैं, परन्तु कालांतर में पति प्राप्त हो जाए और पतिव्रता धर्म का पालन करके गर्भवती बनकर सन्तानोत्पत्ति करती है, अर्थात् जिसमें संतानोत्पत्ति की योग्यता तो हैं, परन्तु वर्तमान में शादि पति संयोग आदि साधन - सामग्रिओं का अभाव हैं और वह कुमारिका है, परन्तु उसमें योग्यता का अभाव नहीं है । बस, ऐसी ही बात भव्यात्माओं की भी है । कुमारिका स्त्री जैसे भव्य कक्षा के जीव होते हैं । कालांतर में जिस प्रकार शादि - पति संयोगादि सामग्री की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार की अनुकूलता उपलब्ध होने पर कुमारिका जिस प्रकार संतनोत्पति कर मातृत्व धारण करती हैं, उसी प्रकार भव्यात्मा सब प्रकार की अपेक्षित सामग्री के उपलब्ध होने पर सम्यग्दर्शन - सच्ची श्रद्धा आदि प्राप्त कर - विकास करते करते कालांतर में सिद्ध बनती है - मोक्षगमन करती हैं ।
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एक अन्य स्त्री हैं जिसमें जन्म से ही सन्तानोत्पत्ति की क्षमता ही नहीं हैं योग्यता का ही अभाव है । लाख प्रयत्न करने पर भी असंभव संभव नहीं बनता । शादि - पति संसर्ग आदि सभी सामग्रियाँ प्राप्त होने पर भी आजीवन गर्भवती नहीं
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