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जगत् कर्ता अथवा सृष्टि के रचयिता, सर्जनहार और विसर्जनहार आदि मानकर ईश्वर का स्वरूप ही सर्वथा विकृत करके मानने में ही क्या आस्तिकता बनी हुई है ? नहीं - नहीं - इसके बजाय जैन दर्शन तो ईश्वर का अत्यन्त शुद्ध-विशुद्ध पूर्ण परमात्म स्वरूप स्वीकार करता है । वह इसी परमात्मा को सर्व कर्म मुक्त सर्वज्ञसर्वदर्शी अरिहंत बीतराग के स्वरूप में मानता हैं । अतः जैन उसे ईश्वर ही नहीं बल्कि परमेश्वर के रूप में मानते हैं। इस प्रकार जैनों को नास्तिक कहने के बजाय अन्य सभी की अपेक्षा अधिक शुद्ध तथा महान् आस्तिकं कहना चाहिए और ईश्वर का स्वरूप राग-द्वेषी बनाने वालों, विकृत करके मानने वालों को घोर नास्तिक कहना चाहिये । किस प्रकार और किन अर्थो में जैन दर्शन को नास्तिक कहा जा सकता है ? ऐसा कहने का प्रश्न ही नहीं उठता । यदि जैन नास्तिक सिद्ध होंगे, तब तो अन्य सभी महानास्तिक सिद्ध होंगे । फिर तो अन्य कोई भी आस्तिक सिद्ध ही नहीं हो सकेंगे, क्यों कि शुद्ध और सच्चे सचोट सिद्धान्त को मानने वाले . स्वीकार करने वाले ऐसे जैनों ने ईश्वर का स्वरुप विकृत नहीं किया है बल्कि उन्होने तो ईश्वर का परम शुद्ध स्वरूप यथावत् रखा हैं ।
आस्तिक नास्तिकवाद -
महाराष्ट्र के पूना शहर में पी. एम. वैद्य नामक कथित विद्वान हुए । इन्हे तिथि चर्चा में निर्णायक के रूप में नियुक्त किया गया था । इस अर्थ में इन्हें सभी पहचानते होंगे । उन महाशय ने 'वेद शास्त्रोत्तेजक सभा - पुणे' के हीरक महोत्सव के प्रसंग पर प्रकट हुए विशेषांक में लेख लिखा हैं । 'नास्तिक किंवा अवैदिक दर्शने' | मराठी भाषा में लिखित इस लेख में उन्होने जैन दर्शन को नास्तिक बताया है । अवैदिक कहां है - यह बराबर है । उसे अवैदिक कहा है - यह बात सही हैं । वेद को मानने वाला वैदिक दर्शन जैन नहीं है अतः अवैदिक सिद्ध होता है - यह ठीक ही है, परन्तु अवैदिक वेद बाह्य होने से वह नास्तिक सिद्ध नहीं सकता है । आस्तिक-नास्तिक विषयक कुछ विचारणा तीसरे प्रवचन में हम कर चुके हैं (वहाँ से पढ़कर पुनः ध्यान में लेने हेतु निवेदन हैं) हमारे वेदों को नहीं मानते हैं और ईश्वर को जगत का कर्ता नहीं मानते हैं अतः जैन वैदनिंदक होने से नास्तिक हैं- ऐसी मनोकल्पित व्याख्याओं से जैनों को नास्तिक कहने वालों को क्या उनकी ही व्याख्या के आधार पर हम नास्तिक नहीं कह सकते हैं ? जैन भी कह सकेंगे कि वैदिक हमारे आगमों की निंदा करने वाले हैं, सर्वज्ञ सिद्धान्त के
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