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________________ रुप से विचार-विमर्श करना। जो बाहर प्रकट न हो पाए ऐसी मंत्रणा करने वाले को मंत्री कहा जाता है । इसी प्रकार मंत्र अर्थात् कोई गुप्त वस्तु या यत्नपूर्वक रखा हुआ इष्टदेव या इष्टशक्ति का नाम, जो मंत्ररुप में स्मरण किया जाता हो, जिसकी साधना सतत की जाती हो वह मंत्र । अतः मंत्र गुप्त वस्तु है मंत्र को गुप्त रखने ही अधिक औचित्य है । यह चाहे जिसे नहीं दिया जा सकता न चाहे जिसके आगे बोला जा सकता है ऋषिमंडल स्तोत्र में तो यहां तक स्पष्टतया कहा गया है कि एतद् गोप्यं महास्तोत्रं, न देयं यस्य कस्यचित् । मिथ्यात्ववासिने दत्ते, बालहत्या पदे पदे ॥ यह महास्तोत्र है, इसे गुप्त रखना चाहिये इसे चाहे जिस किसीको कभी भी न दिया जाए यदि यह किसी मिथ्यात्वी के हाथ में दे दिया जाए तो बड़ा भारी अनर्थ हो सकता है अतः देनेवाले को कदम कदम पर बालहत्या का दोष लगत है इसीलिये मंत्रो को अधिक से अधिक गुप्त रखा गया है । स्वाभाविक है कि जो वस्तु जितनी अधिक मूल्यवान होती है, उसे उतनी ही सुरक्षित रुप से सम्हालकर गुप्त रखी जाती है । यह स्वाभाविक नियम जगत में दिखाई देता है हीरे - रत्नादि बहुमूल्य वस्तुएँ है अतः लोग उन्हें घर में जहां तहां अस्थान में बिखरे हुए नहीं रखते, परन्तु इन्हें भली प्रकार सम्हालकर तिजोरी में, ताले में अथवा सेफ डिपोजिट वोल्ट में सुरक्षित रखते है इन्हें गुप्त रखते हैं सबके सामने खुले नही छोडते इसी प्रकार मंत्रशास्त्र के नियमानुसार मंत्र तो हीरे और रत्नों से भी अधिक मूल्यवान हैं अधिक उपयोगी होते हैं अतः जिस प्रकार यंत्रों को गुप्त रुप से सम्हाल कर रखा जाता है उसी प्रकार मंत्रों को भी सम्हाल कर सुरक्षित रखा जाता है । . गुप्त रखे हुए मंत्र : - स्तोत्रों में. भूतकाल 'में अनेक महापुरुषों ने स्तोत्रों की रचना की और उन्हें सामान्य रुपसे प्रभु-भक्ति-प्रधानरखा उनके द्वारा प्रभु की भक्ति की गई, भक्ति में नम्रता की सौरभ है विनम्र भावपूर्वक पूज्य प्रभु के प्रति पूज्यता प्रकट करते गए और स्तोत्र के माध्यम से गुणगान करते गए, स्तोत्र अथवा महास्तोत्र प्रायः गुणस्तुति प्रधान ही बने हैं। विख्यात मंत्रवादि भक्तामर स्तोत्र के रचयिता पूज्य मानतुंगसूरि महाराज भक्तामर स्तोत्र के अंतिम श्लोक की रचना में यह भाव स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि 11
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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