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________________ एक मात्र मनः पर्यवज्ञानीजनों में ही इस प्रकार की मनोगत भावों को जानने की लब्धि होती है, अतः वे ही जान सकते हैं । ईश्वर की सृष्टि उत्पन्न करने की इच्छा का हम अन्य जीव कैसे जान सके ? क्या हम सब मनः पर्यवंज्ञानी हैं ? नहीं, किसी एक मनः पर्यवज्ञानी ने ईश्वर की इच्छा को जाना और उसने हमारे जैसे सभी को कहा - क्या यह पक्ष भी उचित है ? यदि यह मानते हो तो ईश्वर की इच्छा को जानने पहचानने वाले अन्य मनः पर्यवज्ञानियों की सत्ता भी हमें स्वीकार करनी पड़ती हैं । तब वह मनःपर्यवज्ञानी कौन? ईश्वर ने कुछ भी न था ऐसे शून्य में से सृष्टि बनाई है तो उस समय अन्य मनः पर्यवज्ञानी की सत्ता कैसे स्वीकार की जाए? अभी तो ईश्वर ने इच्छा ही की है अभी सृष्टि का निर्माण तो हुआ ही नहीं, तो फिर कोई अन्य मनः पर्यवज्ञानी कहां से आ सके ? क्या ईश्वर ने इच्छा करने के साथ ही अपनी इच्छा को जानने वाले अन्य मनः पर्यवज्ञानी का अपने ही हाथों से निर्माण किया था ? यदि किया था तो कारण क्या था ? स्वेच्छा को जानने के लिये या यथेच्छ सब बनता है या नहीं, इसकी जांच करने के लिये ऐसा किया था ? क्या उत्तर ढूंढे ? क्या सर्वज्ञता से सर्वव्यापकता ? पहले सर्वज्ञता पक्ष ईश्वरमें सिद्ध करो और फिर उस सर्वज्ञ ईश्वर को सर्व व्यापकगिननो ? क्या ऐसा करना है । तो फिर ईश्वर विश्व व्यापी है या ईश्वर का ज्ञान सर्वव्यापी है ? यदि ईश्वर और ईश्वर के ज्ञान में अल्पाधिकता का भेद करते हो तो क्या यह समझें कि ईश्वर का ज्ञान अधिक देश व्यापी है जब कि ईश्वर न्यूनदेश व्यापी हैं ? यदि ईश्वर को ज्ञान से सर्वव्यापी कहते हो तो ज्ञान में कर्तत्व स्थापित करें या ईश्वर में कर्तृत्व स्थापित करें ? क्यों कि ज्ञान का कार्य तो मात्र जानने का है । पदार्थों की रचना करने का या निर्माण करने का कार्य ज्ञान का नहीं है । तो फिर सर्वज्ञ होकर ईश्वर ने क्या किया ? विश्व की सभी वस्तुओं को जाना या बनाया ? इस प्रकार सर्वज्ञता से कर्तृत्वपन चला जाता है । ये सभी आबाल-गोपाल जीव जानते हैं कि ज्ञान से जाना जाता है । ज्ञान स्वयं बनाने का कार्य करता नहीं है। . ____ चलो, जब ईश्वर सर्वज्ञ थे, तब सृष्टिकर्ता थे या नहीं ? यदि दोनों ही एक साथ थे , तो जब सर्वज्ञ थे तब सर्व ज्ञान से उन्होंने क्या देखा था ? विश्व के कौन से पदार्थ देखे थे ? क्यों कि अभी तक ईश्वर ने कुछ बताया ही नहीं, किसी प्रकार 287
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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