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आँखे मूंदकर श्रद्धा भाव से भवोभव आराधना करते हैं तो कोई समस्या ही नहीं रहती । एक बार गाड़ी की पटरी को सही दिशा मिल जाने के बाद तो आँखे बंद करके भी गाड़ी चलाएं तो चलेगी । हमें भव भवान्तर का बड़ा दीर्घ विचार करना हैं, दीर्घ द्दष्टि दौड़ानी है, अतः कसौटी के कुछ शेष बिंदुओं का हम आगे विचार करते हैं।
. ईश्वर की सर्व व्यापकता सही या गलत ?
___ जगत् कर्तृत्ववादी ईश्वर की महिमा में वृद्धि करने के लिये एक अन्य विशेषण कारणरुप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि हमारे ईश्वर सर्व व्यापी हैं सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हैं । इस विश्व में राई के एक दाने जितना भी रिक्तस्थल नहीं हैं, जहाँ ईश्वर न हो ? स्तुति करते हुए वेद-वेदांत में ऐसे श्लोक प्रस्तुत करते हैं।
जले विष्णुः स्थले विष्णु - विष्णु पर्वतमस्तके ।
सर्वभूतयो विष्णु - स्तस्माद् विष्णुमयं जगत् ॥ • इस श्लोक में स्तुति करते हुए कहते हैं कि जल में विष्णु हैं, स्थल-पृथ्वी के सभी भागों में विष्णु है और पर्वत के मस्तक पर भी विष्णु है, सभी प्राणीयों में विष्णु है, इस प्रकार यह सम्पूर्ण जगत विष्णुमय ही है । विष्णु विहीन तिलमात्र भी रिक्त-स्थान इस विश्व में नहीं है । अर्थात् विष्णु से व्याप्त यह जगत है । इस प्रकार सर्वजगत में ईश्वर व्याप्त है ।
परन्तु ईश्वरवादिओं के इस विचार के विरुद्ध एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह ईश्वर किस प्रकार विश्वव्यापी है ? शरीर से व्याप्त है या शरीर के बिना भी व्याप्त है ? यदि शरीर से व्याप्त है तो इतना विशाल शरीर होना चहिये कि सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त कर ले ? तो क्या ईश्वर का शरीर विश्व के आकार जितना विशाल माने ? ठीक हैं यदि सम्पूर्ण विश्वके समान विशाल मान लेंगे तब तो फिर सम्पूर्ण विश्व में एक मात्र ईश्वर का ही अस्तित्व सिद्ध होगा । ईश्वर के सिवाय अन्य किसी का अस्तित्व सिद्ध ही न हो पाएगा, क्यों कि ईश्वर के सिवाय अन्य पदार्थों के रहने का स्थान, ही कहां रहा ? दूसरा स्थान रिक्त है और वहाँ दूसरे पदार्थ रहते हैं - ऐसा मानते हो तो ईश्वर की सर्वव्यापकता भी मिट जाएगी और सभी पदार्थों को विश्व के एक कोने में स्थित मानना पडेगा, बताओ, क्या आपको यह सिद्धांत मान्य हैं ? :
नही, नहीं तो फिर इन दो में से किसका अस्तित्व मानें ? एक ही म्यान में
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