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________________ विशिष्टज्ञान विज्ञान कहलाता है । इस अर्थ में भी नवकार महामंत्र का विज्ञान अद्भुत है । इस में आत्मादि तत्त्वों का अद्भुत विज्ञान निहित है । यंत्रात्मकता की दृष्टि से विचार किया जाए तो नवकार महामंत्र की यंत्रात्मक रचना भी है सिद्धचक्र के स्वरुप में यही नवकार यंत्र स्वरुप धारण करता है । मंत्र - तंत्र - और यंत्र : 1 इस जगत में मंत्र, तंत्र और यंत्र तीनों का अपना अपना काल रहा है - युग चले हैं । इसीलिये मंत्रयुग, तंत्रयुग, और यंत्रयुग नामक तीन प्रकार के युग चले हैं. भूतकाल में एक काल मंत्रयुग था जब चारों ओर मंत्रों की बोलबाला थी, मंत्रों की प्रधानता थी । मंत्र के स्मरण मात्र से अधिष्ठित देव उपस्थित होते थे और साधक के सभी कार्य सफल हो जाते थे, मनोरथ पूर्ण हो जाते थे । उस युग में सैंकड़ो मंत्र प्रचलित थे । मंत्रो की शक्ति अचिन्त्य अपरंपार थी । मंत्रसाधना व्यापक मात्रा में होती थी । बहुत ही अल्प काल में देवतागण उपस्थित हो जाते थे । सात्विक वृत्ति वाले जीवों की प्रधानता के कारण सात्विकता का वह काल था, अतः मंत्र भी उस काल में त्वरित गति से फलीभूत होते थे । मंत्र की शक्तियों के आधार पर बाण भी छोड़े जाते थे, युद्ध भी लड़े जाते थे, और आधुनिक मिसाईलों की भाँति उस काल में मंत्रशक्ति के बाण भी निर्दिष्ट स्थान तक पहुँचते थे और यथेच्छ कार्य सम्पादित करके लौट आते थे । इन्द्र का वज्र और ब्रह्मास्त्रादि विविध प्रकार के मंत्राधिष्ठित शस्त्र उस युग में थे। मंत्रों की सहायता से यंत्र मानव का भी निर्माण संभव था । मंत्रो से जड़ सेनाएँ भी बनती थी और वे जड़ सेनाए यंत्र मानव की तरह युद्ध करती थी । मंत्र की शक्ति से दुर्ग के चारों ओर खाईयाँ खोदी जाती थी, उन में अंगारे भरे जाते थे और भरे हुए अंगारो को ठंडा भी कर दिया जाता था । पलभर में यथेच्छ आश्चर्यजनक कार्य मंत्र शक्ति से सम्पन्न हो जाया करते थे । इतनी अधिक गज़ब की चमत्कारिता का वर्णन मंत्र शास्त्रों में उपलब्ध होता है । चमत्कार का अर्थ है असंभव लगने वाले कार्यों को क्षण भर में संभव कर देना, काल्पनिक को वास्तविकता में बदल दिया जाता था। आश्चर्यजनक घटनाओं को जादूई चमत्कारों की तरह खड़ा कर दिया जाता था । चमत्कार कोई जादू या इन्द्रजाल की बात नहीं है । जादू और इन्द्रजाल के क्षेत्र में वास्तविकता को जितना स्थान नहीं है, उसकी अपेक्षा हजार गुना वास्तविकता - - 8
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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