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नियम बनाया जा सकता था कि यंत्र यंत्र इच्छा शक्ति : तत्र तत्र कार्यसिद्धि ! जहाँ जहाँ इच्छा शक्ति होती है, वहाँ वहाँ कार्य सिद्धि होती है । यदि यह सिद्धान्त स्वीकार्य हो तब तो सामान्य जीवों में भी इच्छा शक्ति तो है ही, फिर उसी की कार्य सिद्धि क्यों नहीं दीखती ? ईश्वर जो इच्छा करता है वे ही शब्द वेद में लिखे हुए है उन्हीं शब्दों को पढ़कर आज हम भी इच्छा करें तो क्या इच्छा करने मात्र से ही सृष्टि का निर्माण कार्य हो जाएगा ? भले ही हमारी इच्छा से कार्य सिद्धि होने में अधिक समय लगे, काल का विलंब हो तब भी चलेगा । कालांतर में कार्यसिद्धि होगी ही - ऐसा भी हमें कोई कहता हो तब भी सुंदर । परन्तु लाखों करोड़ो जीव असंख्य प्रकार की इच्छाएँ नित्य करते रहते हैं, परन्तुं किसी भी एक भी इच्छाफलित नहीं होती । इच्छानुसार कार्य होते नहीं तो क्या समझा जाए होते हों तो ? तब तो इच्छा फलित होने वाले सभी ईश्वर हो जाएंगे ? क्या ईश्वर होना सरल है कि इच्छा करना आने के साथ ही ईश्वर होना संभव हो जाए ? नहीं कदापि नहीं यदि यह संभव होता तब तो लाखों करोड़ो ही नहीं बल्कि असंख्य जीव ईश्वर ही हो जाते और तब कितनी प्रकार की सृष्टि रचना होती ? क्यों कि सब की इच्छाएँ भिन्न भिन्न होने से सृष्टि भी भिन्न भिन्न होती पर ऐसा न हुआ है, न होगा।
क्या इच्छा तपोबल से फलित होती है ?
इच्छा स्वयं ही फलित होती है अथवा तपोबल आदि से फलित होती है ? यदि इच्छा स्वयं ही फलित होती है यह पक्ष स्वीकार करते हो तो जगत में लाखों करोड़ो जीव असंख्य प्रकार की इच्छा करते हैं, जो सभी फलित हो जाती क्यों कि सबकी इच्छाएँ तो हैं ही । दूसरे पक्ष का विचार करें तो ईश्वर की इच्छा भी उनकी किसी विशिष्ट तप साधनाके आधार पर फलित होती है । ईश्वर का तपोबल बहुत ऊँचा है - ऐसा यदि उत्तर दिया जाए तो ईश्वर ने तप कब किया ? किस जन्म में उसने तप किया ? क्या सृष्टि की रचना करने के लिये जन्म लेने से पूर्व भव में उसने तप किया था ? तो फिर सृष्टि की रचना ही हुई न थी, जब कुछ भी न ता, तब क्या ईश्वर ने जन्म लिया था और तप किया था यह कैसे संभव हो सकता है। तब तो तप करने के लिये ईश्वर ने किसी शरीर की रचना. तो की ही होगी न ? या बिना शरीर के ही काम चला लिया ? यदि कहते हो कि शरीर धारण करके
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