SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करते हैं, जीवन यापन करते हैं और स्व-स्व कर्मानुसार सुख-दुःख भुगतते हैं । इतना सरल सीधा सत्य स्वीकार कर लिया जाय तो कहीं भी आपत्ति नहीं आती और ईश्वर का अंश, ईश्वर की इच्छा, अथवा एक ही जीवात्मा आदि दोषयुक्त विचारधाराओ को मानने की आवश्यकता ही नहीं रहती । एक ही समय में एक साथ ईश्वर की कितनी इच्छाएँ ? जगत में जीवसृष्टि अनंतानंत है । अनंत जीव प्रति समय सुख दुःख भुगतते हैं । अब यदि सभी को एक मात्र ईश्वर की इच्छा के साथ जोड़ देंगे और ईश्वरेच्छा के बिना कोई भी सुख-दुःख आदि कुछ भी पा ही न सके, जगत् में इश्वरेच्छा के बिना कुछ भी होना असंभव हैं... ऐसी बातें करें तो एक प्रश्न यह भी होता है कि ईश्वर की इच्छाएँ क्रमिक होती हैं या एक साथ ही सभी हो जाती हैं ? कौन सा पक्ष सत्य समझें । क्योकि जगत में अनंत जीव हैं । अनंतो की . प्रवृत्तियाँ अनंत प्रकार की हैं । अनंत जीवों के कार्य भिन्न हैं, विचार भिन्न भिन्न हैं। एक समान स्थिति एक ही साद्दश्यता तो इस दृश्य जगत में है नहीं, तो फिर जगत् के आधार पर तो ईश्वर की इच्छा एक ही समय एक साथ अनंत माननी पडेंगी, क्यों कि ईश्वर की इच्छा के बिना तो कुछ भी होता ही नहीं, कोई भी कुछ भी कर ही नहीं सकता तो क्या समझा जाए ? - क्या ईश्वर को मात्र इच्छा करने वाली मशीन जैसा मान लें ? और हाँ, मान भी लें तो प्रश्न उठता है कि ईश्वर जो अनंत इच्छाएँ करता हैं वे सभी एक समय - एक ही दिशा में एक ही विषयवाली समान इच्छाएँ करता है या विपरीत भाववाली भी इच्छाएँ एक साथ करता है ? जिस समय ईश्वर सुख की इच्छा करता है क्या उसी समय वह दुःख की भी इच्छा करता है अथवा समयांतर से करता हैं ? यदि समयांतर से करता हो और क्रमशः एक के बाद दूसरी इच्छा करता हो तो इस जगत में एक ही समय अनंत जीवों में कोई सुख तो कोई दुःख दोनों भाव भुगतते हैं, तो क्या समझा जाए ? इस प्रकार जीवों के अनंत विचित्र, विषय और विपरीत भावों के अनुरुप ईश्वर की इच्छा का सामञ्जस्य कैसे बिठाया जाए ? अन्य भी प्रश्न खड़े होंगे जैसे इश्वर की इच्छानुसार जगत में घटनाएँ घटती हैं अथवा जगत में जो घटनाएँ घटती हैं तदनुसार ईश्वर की इच्छाएँ होती हैं ? इन दोनों में से कौन सा पक्ष सही लगता है । यदि जैसा जगत में होता है, तदनुसार ईश्वर की इच्छा होती हो तो पहले जगत में कार्य होना और फिर ईश्वर 240 - -
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy