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में इतनी बातें हैं अथवा नहीं ? इतना देख लेने से ईश्वर की परीक्षा हो जाती हैं, फिर आँखे मूँद कर आजीवन हम उसे ईश्वर मान सकते हैं । हाँ उस में इतनी बातें अवश्य होनी चाहियें । उपरोक्त श्लोक में सारभूत तीन बातें विशेष रुप से कही गई हैं । (१) मोक्षमार्ग के प्ररूपक कहने से उनकी वीतरागता सिद्ध होती है। रागी -द्वेषी हो तो वह संसार या स्वर्गादि की प्राप्ति की बात करे । ईश्वर स्वयं अकेला ही मोक्षगमन करे और जीव को यही संसार चक्र में परिभ्रमण करवाता रहे, भले ही स्वर्ग में ले जाए, परन्तु वह स्वर्ग भी अन्ततः तो संसार चक्र में ही गिना जाता हैं । स्वर्ग में से भी आखिरकार तो मरकर पुनः भ्रमण ही करना है फिर प्रश्न ही कहाँ रहा ? इसी लिये मोक्ष का अनुसरण करने वाले, मोक्ष की ओर जाने वाले मार्ग पर हमें ले जानेवाले नेता जो हों वे ईश्वर ही सच्चे भगवान कहलाएँगे (२) दूसरे विशेषण में " भेत्तारं कर्म भूमृताम् ” भगवान की सर्व दोषरहितता बताई गई है । अर्थात् जिस ईश्वर ने अपने काम क्रोध मान माया - लोभादि विषय - कषायादि सभी दोष सर्वथा दूर कर दिये हैं, निवारण कर दिया है, वही सच्चा ईश्वर है । कर्म ही आत्मा पर लगा हुआ सबसे बड़ा दोष है, यही बाधक है। अतः सर्व प्रथम कर्म के दोषों का ही निवारण करना चाहिये । इन में भी जिन्होंने कर्मो की विराट पर्वत श्रेणियों, उत्तंग गिरिमालाओं को भेद डाला हो वे ईश्वर ही सच्चे भगवान हैं । पर्वत शब्द का प्रयोग करके यह बताया है कि सच्चे ईश्वर ने कर्म की कितनी विपुल राशि का क्षय किया है । उसने एक - दो कर्मों का ही नहीं, बल्कि कर्मों के जो बड़े बड़े ऊँचे ऊँचे पर्वत थे उन्हें भेद डाले हैं, अर्थात् आत्मा में से कर्मों को हटाकर जो स्वयं शुद्ध परमात्मा के रूप में प्रकट हुए हैं- उन भगवान को मानने की बात कही हैं ।
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इसी प्रकार तीसरे विशेषण में 'ज्ञातारं विश्व तत्त्वानां' कहकर समग्र विश्व के समस्त पदार्थों - तत्त्वों के ज्ञाता कहकर प्रभु की सर्वज्ञता सिद्ध की है । अर्थात् समस्त जगत के सर्व तत्त्वों को जानने वाले सर्वज्ञ प्रभु ही ईश्वर के रुप में शोभायमान होते हैं - ऐसा कहा गया हैं। अंत में 'तीर्थेशं' शब्द कहकर तीर्थों के भी ईश तीर्थेश - तीर्थंकर, तीर्थपति कहा गया हैं, अर्थात् जिन्होंने पूर्व के तीसरे भव में तीर्थंकर नाम कर्मोपार्जन किया हो और इस भव में तीर्थंकरत्व प्राप्त किया हो - ऐसे तीर्थपति - तीर्थंकर या तीर्थेश कहलाते हैं । और ऐसे तीर्थेश हों, जिन्होंने तीर्थकर नाम कर्म बाँध रखा हो वे ही ईश्वर या भगवान कहलाने के अधिकारी हैं
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अन्य नहीं ।
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