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जिस प्रकार आकाश में से वर्षा के रूप में गिरा हुआ पानी अंत में तो समुद्र में ही जाता है, उसी प्रकार सभी देवों (भगवानों) को किया हुआ नमस्कार केशव अर्थात् श्री कृष्ण को ही नमस्कार है । ऐसी मान्यता प्रत्येक ने अपनी अपनी बिठा रखी हो तब तो फिर अपने अपने ईश्वर के विषय में खींचातानी होगी और तब तो इस प्रकार अन्य भी कह सकेंगे कि -
आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरे । सर्वदेवनमस्कारो, जिनेन्द्रं प्रति गच्छति ।।
आकाश में से वर्षा के रुप में बरसा हुआ पानी जैसे अंत में समुद्र में जाता है उसी प्रकार सभी देवताओं को किया हुआ नमस्कार वीतराग जिनेन्द्र भगवान को ही होता है । हम जैन इस प्रकार इनका ही पक्ष लेकर बोलेंगे तो चलेगा ? क्या इन लोगों को बुरा लगेगा । हमारी इस बात पर वे क्रुद्ध होंगे, और हमारी बात स्वीकार नहीं करेंगे । जब सभी भगवानों को एक ही मानने की बड़ी बड़ी बातें. करते हैं तो फिर यह पक्षपात क्यों ?
यह तो सब रहेगा ही, ऐसा तो चलता ही रहेगा । वे लोग अपनी सहमति भी प्रकट कर दें तब भी हमें उनकी बात या उनका पक्ष मानना आवश्यक नहीं है। किसी का भी अंधानुकरण करने की आवश्कता नहीं है । आवश्यकता है स्व बुद्धि का उपयोग करने की । अतः ईश्वर तो बहुत हैं, उन में से परीक्षा करके ही कसौटी पर जो सही उतरें, उन्हें ही मानना है ।
ईश्वर की परीक्षा कैसे - किस प्रकार करें ?
जैसे सोने की परीक्षा कष, छेद, भेद, तापादि से होती है तब हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि यह सोना है । जगत में सैंकड़ो पदार्थों की परीक्षा अनेक प्रकार से होती है, तब ईश्वर की परीक्षा करने से क्या ईश्वर का मूल्य घट जाएगा ? क्या ईश्वर का अपमान हो जाएगा ? ऐसा भय पूर्व से ही मन में क्यों रखें ? अन्य अनेक ईश्वरों में से एक ईश्वर सच्चा सिद्ध होगा तब उस एक का मूल्य हजार गुना बढ़ जाएगा और उतना ही हजार गुना हमारा उसके प्रति पूज्य भाव और आनंद भी बढ़ जाएगा, क्योंकि तब सच्चे ईश्वर का स्वरुप हमारे हस्तगत होगा । तब हम आजीवन निश्चिन्त हो जाएँगे । हमारे में आत्म विश्वास जागृत हो जाएगा कि अब हम सच्ची दिशा में है । हम कहीं गलत नहीं फँसे हैं । जिस प्रकार एक कन्या किसी सच्चे - योग्य व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाकर जीवनभर की
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