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________________ जाती हैं । उसमें उल्लेख है कि ‘आदि देव ने आकाश और पृथ्वी की रचना की । पृथ्वी अस्तव्यस्त थी । जलनिधि पर अंधकार था और उस आदि देव कि आत्मा पानी पर चलती थी अंधकार को दूर करने के लिये देव ने कहा''प्रकाश हो' और तुरन्त प्रकाश हो गया । देव ने प्रकाश और अँधेरे को अलग अलग बाँट दिया । प्रकाश को दिन कहा और अंधकार को रात्रि का नाम दिया। कहते हैं कि सृष्टि निर्माण में देव को ६ दिन लगे । उन में प्रथम दिन देव ने इतना किया। दूसरे दिन देव ने कहा - 'पानी के बीच आकाश बनो,' फिर अंतरिक्ष को ऊपर और नीचे के पानी से अलग अलग किया । इस प्रकार लोक की रचना कर डाली और दूसरा दिन पूर्ण हो गया .' तीसरे दिन कहा - 'आकाश के नीचे के पानी परस्पर मिल जाओ और भूमि दिखाओ इस प्रकार कहने के साथ ही सब कुछ हो गया । इस प्रकार देव ने भूमि को पृथ्वी और एकत्रित बने हुए पानी को समुद्र कहा । आगे पुनः आदेश दिया - बीज, फल, फुल, वृक्ष, पत्ते आदि पृथ्वी पर हो जाओ । इतना कहने के साथ ही पृथ्वी ने इन सभी को पैदा किया । यह था तीसरे दिन का कार्य । चौथा दिन हुआ । देव ने कहा - - ‘आकाश में ज्योति प्रकट हो' । इतना कहने के साथ ही सूर्य, चंद्रादि, तारे आदि हो गए । फिर उससे रात-दिन ऋतु , माह, वर्ष हुए । देवने इन सब को स्थिर करके अपना चौथा दिन पूर्ण किया । पाँचवे दिन पानी को आदेश दिया कि वह जीव-जन्तुओं को बहुत बड़ी संख्या में पैदा करे । यह भी कहा कि आकाश में पक्षी, पानी में बड़ी बड़ी मछलियाँ पृथ्वी पर पेट के बल चलनेवाले जंतु आदि हों और सभी अपनी अपनी जाति का बहुत बड़ी संख्या में विकास करें । इतना कहने के साथ ही सब कुछ हो गया। यह था पाँचवे दिन का कार्य । छठे दिन देव ने पृथ्वी से ग्राम्य एवं वन्य पशुओं की उत्पत्ती करवाई। तत्पश्चात् देव में स्व - स्वरुप देखने के लिये मानव को उत्पन्न करने की इच्छा हुई और उसने इस बार बिना किसी को आदेश दिये स्वयं ही मानव का निर्माण किया। मानवों में स्त्री-पुरुष की अलग अलग व्यवस्था की और फिर आशीर्वाद दिया कि वे फूलें फलें, उनकी वृद्धि हो वे सफल हों और पृथ्वी को भरपूर कर दें । इसलिये जनसंख्या में वृद्धि होती ही गई । साथ ही यह भी आदेश दिया कि देव ने जो सागसब्जी, बीज-फलादि उत्पन्न किये हैं उनका मनुष्य भोजन करे । अन्य जीव जंतुओ 162
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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