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नमाने की क्रिया करने के साथ साथ सूत्र पाठ बोलते हुए झुकना चाहिये । इस वंदन की यह रीति है इस में काय योग अर्थात् क्रियात्मकरीति से अंग नमाते हुए
और वचन योग - अर्थात् सूत्रोच्चार पूर्वक तथा मनोयोग अर्थात् नम्रता नमोभावपूर्वक इस प्रकार तीनों ही मन वचन, और काया के त्रिकरण योग पूर्वक यह वंदन नमस्कार किया जाता है ।
(३) द्वादशावर्त वंदन द्वादश, अर्थात् १२ बारह और आवर्त अर्थात् गोलाकार फिराते हुए 'अहो कायं काय संफासं' बोलते हुए हाथ चरण से मस्तक तक स्पर्श करवाते हुए वांदणां लेते समय जो किया जाता है वह आवर्त । प्रथम वांदणां वन्दन में अहो, कायं, काय- संफास के तीन आवर्त और जत्ता भे ! जवणि ज्जंचभे! में भी तीन आवर्त इस प्रकार प्रथम बार वांदणां लेते समय अर्थात् वंदन करते समय 'सुगुरु' वंदण सूत्र में बोले जाने वाले ६ आवर्त होंगे जो 3 +3+3+3 =
12 आवर्त होंगे। इन बारह आवर्तीको ध्यान में रखकर इन्हें क्रियात्मक रुप देते हुए जो वंदन किया जाता है उसे द्वादशावर्त वंदन कहते हैं । यह तीसरे प्रकार का अन्तिम विस्तृत वंदन है । उपर्युक्त तीनों ही प्रकार के वंदन किन्हें कैंसे किये जाते हैं यह बात गुरुवंदन भाष्यकार स्वंय निम्न लिखित गाथा से बताते हैं :
तइयं तु छंदण दुगे, तत्थ मिहो आइमं सयल संघे । . बीयं तुं देसणीण य, पयट्टियाणं च तइयं तु ॥४॥
तीसरा द्वादशावर्त वंदन दो वंदन पूर्वक होता है । इन तीन प्रकार के वंदनों में प्रथम फिट्टा वंदन मस्तक नमाने से, हाथ जोड़कर अंजलि पूर्वक तथा पाँच अंगोमें से १-२ अंग यथोचित ढंग से नमाते हुए किया जाता है । यह फिट्टावंदन श्री चतुर्विध संघ में चारों ही वर्ग परस्पर करते हैं । दूसरा पंचांग प्रणिपात खमासमणा पूज्य साधु-साध्वी को किया जाता है और तीसरा द्वादशावर्त वंदन
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