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________________ अध्याय-१५ ध्यान साधना से “आध्यात्मिक विकास" . . . . . . . . . . ......१०२३ . . . आसनजन्य स्थिरता या प्रमादरिहत स्थिरता ?........९७७ ज्ञान से ध्यान या ध्यान से ज्ञान ?...................९७८ ध्यान का फल - निर्जरा. .........................९८४ . ध्यान का शब्दार्थ..................................९८८ चिन्ता और चिन्तन................................ .९९१ - ध्यान की व्याख्या .................................९९४ मन की अस्थिरता - चंचलता का कारण.............९९९ चंचलता और स्थिरता का स्वरुप.....................१००१ ध्यान के भेद........................................१००३ धर्म ध्यान.. ...............१०१८ धर्म ध्यान के भेद....................................१०२१ आज्ञा धर्म के इच्छा धर्म........... ज्ञानार्णवादि ग्रन्थों में आज्ञाविचय..... ....१०२९ दुःख का वास्तिवक कारण क्या है ?..................१०३३ सालंबन ध्यान के निरालंबन ध्यान....................१०४६ निश्चय और व्यवहार.................................१०५० निरालंबन ध्यान................... ..............१०५२ धर्म ध्यान तथा शुक्ल ध्यान के गुणस्थान..............१०५६ धर्म ध्यान में - पिंडस्थादि ४ प्रकार...................१०५७ सप्तनयात्मक आत्मस्वरुप....... स्याद्वाद की सप्त भंगी से आत्मिचन्तन.................१०६० योगांग अष्ट........ ...................१०७१ योगांग ८ और ८ दृष्टियों की समानता.................१०७७ अष्टांग योग में गुणस्थान विकास.....................१०७९ भावना योग.................................... .....१०८२ मैत्री आदि ४ भावनाएं...............................१०८९ . . . . . . .. . . . . . ..१०५९ . . . . . . . . . ....... ...... ...... ... ...... ...... .
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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