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जे अ अइआ सिद्धा, जे अ भविस्संतिऽणागए काले।
संपइअ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ॥ जो अतीत = बीते हुए भूतकाल में मोक्ष में जा चुके हैं तथा जोआगामी भविष्यकाल में भी सदा मोक्ष में जाते ही रहेंगे, तथा जो वर्तमान अर्थात् संप्रति-सांप्रत काल में मोक्ष में जा रहे हैं । जिनका मोक्षगमन अभी चालु है । ५ महाविदेह क्षेत्रों में से आज भी जो मोक्ष में जा रहे हैं उन तीनों काल के सिद्ध भगवंतों को मैं मन-वचन-काया के तीनों योगों से त्रिकरणशुद्ध भाव से नमस्कार करता हूँ।
“णमो सया सव्व सिद्धाणं" इस मन्त्र पद से भी “सदा सर्व सिद्ध भगवंतों को नमस्कार" किया गया है । इसी को मन्त्र रूप में जाप करने से बार-बार हजारों लाखों की संख्या में नमस्कार करने से उतने कर्मों की निर्जरा होती है । और इस तरह संसारी जीव सिद्ध-मोक्ष के बीच का अपना अन्तर कम करता है । काल अन्तर, तथा भव अन्तर कम करके अल्प काल में मोक्ष में पहुँचता है । अतः सिद्धों की उपासना जाप-ध्यानादि अनेक तरीकों से होती है । जाप की अपेक्षा ध्यान अनेकगुनी ज्यादा निर्जरा कराता है । कर्मक्षव = निर्जरा कारक ध्यान सही अर्थ में हो तो ही कर्मक्षय संभव है । अन्यथा विपरीत ध्यान कर्मबंधकारक भी है। "पंचसूत्र में सिद्धस्वरूप वर्णन___ आचार्य पुरंदर श्री चिरंतनाचार्य महाराज ने "पंचसूत्र" ग्रंथ की अद्भुत रचना की है। इसमें ५ भित्र-भित्र सूत्रों में आत्मा की क्रमिक शुद्धि का वर्णन करते हुए अन्त में अन्तिम शुद्धि रूप मोक्ष का अद्भुत वर्णन किया है। १ ले सूत्र में विषय-पाप प्रतिघात-गुणबीजाधान का रखा है। २ रे सूत्र में साधुधर्म परिभावना सूत्र है । ३ रे में प्रव्रज्या ग्रहण की विधि, तथा ४ थे सूत्र में प्रव्रज्या परिपालना का विषय लेकर क्रमशः आत्मा को शुद्धि की दिशा का निर्देश करते हुए... अन्त में ५ वे सूत्र में प्रव्रज्या का फल मोक्ष की प्राप्ति का निर्देश किया है। ... पाँचवे प्रव्रज्या-चारित्र का निरतिचार सुंदर पालन करके जीव उसके फल स्वरूप में कैसे मोक्ष की प्राप्ति करता है? वह मोक्ष कैसा है इसका सुंदर निरूपण किया है । नित्य स्वाध्याय पाठी साधक उसका रोज स्वाध्याय चिन्तन-मनन-निदिध्यासन करके मोक्ष से अपना अन्तर कम करके सामीप्यता साध सकते हैं। और मोक्ष को समीप ला सकते हैं या स्वयं मोक्ष को यथाशीघ्र प्राप्त कर सकते हैं । अतः नित्य चिन्तन, स्वाध्याय करना ही
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आध्यात्मिक विकास यात्रा