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में गये हैं तो इन दोनों तीनों सिद्धों में अन्तर काफी ज्यादा रहेगा। इस तरह अन्तर रहने में कारण यही है कि.... मोक्ष में जानेवाला जीव... सीधे ९० अंश पर ही सीधे जाकर उसी आकाश प्रदेश में अनन्त काल तक स्थिर रहता है । अतः यह दो सिद्धों के बीच का क्षेत्रान्तर-स्थानान्तर अनन्तकाल तक बना ही रहता है। अनन्त काल के भविष्य में कभी भी रत्तीभर भी यह अन्तर न तो घटता और न ही बढता है । इस तरह स्थानान्तर क्षेत्रान्तर होता है । लेकिन एक आकाश प्रदेश पर जो सिद्ध रहे हुए हैं ठीक उसी आकाश प्रदेश के समीप के अत्यन्त निकटस्थ दूसरे आकाश प्रदेश पर यदि कोई सिद्ध रहे हुए हो तो.. दोनों के बीच में अन्तर नहीं रहता है । वे स्पृष्ट भी रहते हैं । इस तरह मोक्ष में सिद्धात्माओं में गत्यन्तर, स्थानान्तर, कालान्तर, क्रमान्तर आदि का विचार किया गया है।
___ भावान्तर की दृष्टि से विचार करने पर एक बार सिद्धावस्था प्राप्त कर लेने के पश्चात् सिद्धान्त यही है कि... पुनः कभी भी मोक्ष से उतरकर संसार में नहीं आते हैं। अतः “अपुनरावृत्ति"वाले सिद्ध होते हैं । जैसा कि.. वैदिक दर्शनों की मान्यता है कि... सिद्ध मुक्तेश्वर पुनः संसार में आते हैं। जन्म धारण करते हैं। अधर्म का नाश और धर्म का
अभ्युदय उत्थान करने के लिए पुनःअवतार लेकर पुनः संसार में आते हैं । और पुनःजाकर सिद्ध-मुक्त बन जाते हैं । इस बात को भगवद्गीता में— “यदा यदा हि धर्मस्य" के श्लोकों से स्पष्ट किया गया है । इन श्लोकों से उनका कहना है कि....ईश्वर अपनी रचित सृष्टि की पूरी चिन्ता करते हैं। कहीं उनकी रचित सृष्टि में संतुलन एवं व्यवस्था बिगड न जाय' इसका ईश्वर पूरा ध्यान रखते हैं । इस सृष्टि में धर्म की व्यवस्था है । उसमें यदि धर्म घट जाता है, या धर्म की व्यवस्था यदि बिगड जाय, संतुलन बिगड जाय, तो... ईश्वर को अवतार लेकर आना पडता है। दूसरी तरफ धर्म की मात्रा-प्रमाण यदि घट जाय और अधर्म का साम्राज्य बढ जाय तो भी ईश्वर को वापिस आना पडता है । अपने भक्तों का तो उद्धार करने के लिए, और जो उनके भक्त नहीं है उनका संहार करने के लिए, ईश्वर को अवतार लेकर आना पडता है। सज्जनों को बचाने के लिए उनकी रक्षा करने के लिए.. .ईश्वर को बार-बार आकर अवतार लेना ही पड़ता है । यह हिन्दु धर्मावलम्बियों की स्पष्ट मान्यता भगवद्गीता में स्पष्ट की गई है। इस तरह ईश्वर के अवतार लेने का कारण बताया गया है।
सृष्टि की उत्पत्ति के पीछे एक मात्र ईश्वर की इच्छा को ही कारण बताया गया है और कोई प्रबल सबल बलवत्तर कारण नहीं बताया है। आखिर भविष्य में जिस सष्टि का संतुलन तूटनेवाला है, बिखरनेवाली है व्यवस्था, या विपरीतता ही होनेवाली है तो फिर
विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति"
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