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________________ बादल हट जाय उस दिन आत्मा पूर्ण रूप से देदीप्यमान सिद्ध भगवान ही है। यही मोक्ष है। आत्मा की पर्याय का परिवर्तन है। संसारी अवस्था में पर्यायें रोज बदलती थी, परिवर्तनशील थी जबकि सिद्धावस्था में स्थिर पर्याय है । अनन्त काल तक भी सिद्धात्मा की स्थिर पर्याय कभी बदलती ही नहीं है। अतः मक्त होने का अर्थ यही है कि..अस्थिर पर्याय से स्थिर पर्याय में आना । और परिवर्तनशील पर्याय में से अपरिवर्तनशील पर्याय में आना । काल तत्त्व से भी ऊपर उठकर अकाल-कालातीत होना मोक्ष है । अब काल के बन्धन में या काल के पर्याय में अब सिद्धात्मा नहीं आएगी। न काल उनको लागू होगा। अतः काल का व्यवहार सिद्धात्मा के लिए सर्वथा नहीं होगा। ऐसी कालातीत-अकाल की स्थिति में पहुँची हुई आत्मा को काल के व्यवहाररूप बन्धन में फसी हुई संसारी आत्मा सदा वंदन करती रहे । बस, इसी तरह अपना मुक्ति के बीच का अन्तर घटाती रहे, जिससे एक दिन मुक्ति की प्राप्ति सुलभ हो सके। ६) अन्तर द्वार- अन्तर दो के बीच का अन्तर सूचित करता है । एक सिद्ध से दूसरे सिद्ध के अन्तर की बात का भी संकेत यहाँ पर अन्तरं द्वार से सूचित किया गया है। • जैसा कि पहले भी वर्णन कर चुके हैं वैसे.... एक सिद्ध से दूसरे सिद्ध में अन्तर नहीं है। वे समावगाही हैं । अतः समान अवगाहना से एक सिद्ध दूसरे सिद्ध से स्पृष्ट है । अन्तर की संभावना ही नहीं है। दूसरी दृष्टि से एक के सिद्ध हो जाने के पश्चात् दूसरे के सिद्ध होने में अन्तर है भी सही और नहीं भी है। जब एक समय में कोई सिद्ध होने के पश्चात् तुरन्त दूसरे ही समय यदि कोई दूसरा जीव मुक्त होता है तब अन्तर नहीं रहता है । और यदि कोई १ समय में किसी के सिद्ध हो जाने के पश्चात् कई समयों तक यदि कोई सिद्ध नहीं होता है तो अन्तर पडता ही है । इस तरह अन्तर पडता भी है और नहीं भी पडता है। अब स्थानान्तर की दृष्टि से विचार करने पर एक बार मोक्ष में जाकर जो जहाँ स्थिर हो जाते हैं वे वहीं उसी आकाश प्रदेश का स्पर्श करके अनन्तकाल तक स्थिर रहते हैं। स्थानान्तर नहीं होता है। अर्थात् अनन्त काल तक भी समीप के अस्पष्ट आकाश प्रदेश का स्पर्श नहीं करेंगे । अतः स्थानान्तर होता ही नहीं है । लेकिन एक सिद्ध के स्थान से अन्य दूसरे सिद्ध के स्थान में अन्तर होता भी है और नहीं भी होता है । जब एक जीव जो भरत क्षेत्र से मोक्ष में गया है उसके और महाविदेह से जो मोक्ष में गया है इन दोनों के बीच में स्थान का अन्तर काफी रहता ही है । (इसी तरह यदि... कोई जंबुद्वीप से मोक्ष में गया है और कोई यदि पुष्करार्धद्वीप से मोक्ष में गया है तो दोनों में स्थान-क्षेत्र विशेष का अन्तर काफी रहेगा। इसी तरह यदि कोई सिद्धाचल = शत्रुजय से,या सम्मेतशिखरजी से मोक्ष १४५६ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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