SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीगने तो भी अनन्त x अनन्त सिद्ध होंगे। लेकिन प्रत्येक समय में तो सिद्ध होते भी नहीं है । अतः बिना गुणाकार किये सिर्फ अनन्त की संख्या गिने तो भी पर्याप्त रहेगी । अतः संख्या की दृष्टि से अनन्त की संख्या में संसार में से जीव मोक्ष में गए हैं । क्षेत्रद्वार लोगस्स असंखिज्जे, भागे इक्को य सव्वेवि । क्षेत्र की दृष्टि से समस्त १४ राज लोक का क्षेत्र कितना लम्बा-चौडा विस्तृत हुआ ? ऐसे सर्व लोक के असंख्यातवें भाग में चाहे एक सिद्ध कहिए या चाहे अनन्त सभी जीव उतने ही असंख्यातवें भाग में रहते हैं । अर्थात् संसारी चारों गति के जीवों के लिए रहने का क्षेत्र कितना है । असंख्य योजन विस्तारवाला है। जबकि सिद्धों के लिए रहने का क्षेत्र कितना है ? संसारी जीवों के लिए जितना असंख्य योजन विस्तारवाला है उसका सिर्फ असंख्यातवे भाग का ही क्षेत्र सिद्धों के लिए है । और उसमें रहते कितने सिद्ध हैं ? अनन्त की संख्या में । अतः असंख्यातगुने छोटे से सीमित - परिमित क्षेत्र में अनन्त सिद्धजीव रहते हैं । भूतकाल में जितने अनन्त जीव मोक्ष में गए हैं वे सभी उतने ही सिद्धशिला पर के असंख्यातवे भाग में सिद्ध बन कर रहे हुए हैं, और इसी तरह भविष्य के सुदीर्घ काल में अर्थात् अनन्तगुने पुद्गल परावर्त काल में जितने भी अनन्त जीव मोक्ष में जाएंगे, जाते ही रहेंगे वे सभी उतने ही असंख्यातवें भाग के क्षेत्र में मोक्ष में रहेंगे। काल लम्बा-चौडा ही जाता है । जीवों की संख्या बढती ही जाती है लेकिन सिद्ध क्षेत्र का क्षेत्र न तो बढ़ता है और न ही घटता है । वह जितना था, है, और आगे भी उतना ही रहेगा । उसमें अर्थात् क्षेत्र के विस्तार में एक तसु भर भी वृद्धि - क्षय (घट-बढ) नहीं होता है । अतः सिद्धों के लिए सिद्धक्षेत्र त्रैकालिक शाश्वत है । अनन्त सिद्धात्मा असंख्यातवें भाग के सीमित क्षेत्र में रहते हैं । 1 अरे ! सिद्धों की क्या बात करते हो ? सिद्ध तो अशरीरी है । अतः वे रह सकते हैं । लेकिन संसारी जो जीव... एकेन्द्रिय की कक्षा में हैं वे कर्मों के भार से भारी हैं । ऐसे संसारी स्थावर कक्षा के जीव सूक्ष्म नामकर्म के उदय से एक आलु -प्याज में, अनन्त की संख्या में रहते हैं । अरे ! आलु-प्याज तो बहुत बडे आकार के हैं लेकिन लसून काफी छोटा है और इससे भी छोटा तो अंकूरा है । जब मूँग चना आदि अनाज ठंडे पानी में भिगोकर रखा जाय और उसमें अंकुरित होते हुए जब अंकूरे निकलते हैं उतने अंकुरे के भाग में अनन्त जीव एक साथ रहते हैं । अरे ! अंकुरे भी आकार-प्रकार में बहुत बडे होते विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति " १४४९
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy