SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 478
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७) प्रत्येब बुद्ध बोधित द्वार- कोई स्वयं बोध पाकर सिद्ध होता है, और कोई दूसरों से बोध पाकर सिद्ध बनता है । इसकी विचारणा इस द्वार में की गई है । कई अपने आप ही बोध पाकर मोक्ष में जाते हैं । जिसको किसी के भी उपदेश की आवश्यकता नहीं रहती है । और किसी को दूसरों के उपदेश से ज्ञानबोध होता है । वे बुद्ध-बोधित भी मोक्ष में जाते हैं । देव-गुरु के उपदेश से भी मुक्त बनते हैं। तीर्थंकर तथा प्रत्येक बुद्ध स्वयं अपने आप ही बोध प्राप्त करते हैं जबकि... दूसरे बुद्ध बोधित की कक्षा में दूसरों से बोध पाते हैं। ८) ज्ञान द्वार- इस द्वार में किस ज्ञान से सिद्ध होते हैं कि विचारणा की गई है। अतः मुक्ति की प्राप्ति के लिए केवलज्ञान की अनिवार्यता बताई गई है। प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयनी दृष्टि से केवलज्ञानी सिद्ध होते हैं। पूर्वभावप्रज्ञापनीय की दृष्टि से व्यंजित और अव्यंजित ऐसे दो प्रकारों से विचारणा की जाती है । अव्यंजित मे दो ज्ञान से सिद्ध हुए सबसे कम हैं । ४ ज्ञान से सिद्ध हुए इनसे संख्यातगुने ज्यादा हैं। और ३ ज्ञान से सिद्ध हुए उनसे भी संख्यात गुने ज्यादा है । व्यंजित में मति और श्रुत ज्ञान से सिद्ध सबसे कम, और मति-श्रुत-अवधि-मनःपर्यव इन चार से सिद्ध संख्यात गुने हैं । मति, श्रुत और अवधि ज्ञानवाले तो उनसे भी असंख्य गुने हैं । अर्थात् केवलज्ञान पाने के पहले ये ज्ञान पानेवाले होते हैं। ९) अवगाहना द्वार- अवगाहना शब्द शरीर की ऊँचाई का सूचक शब्द है। शरीर की कितनी ऊँचाईवाले जीव मुक्त बन सकते हैं इस बात की विचारणा इस द्वार में की गई है । यहाँ शरीर की अवगाहना का मतलब आत्मप्रदेशों को इस शरीर में रहने की जगह । शास्त्रों में फरमाते हैं कि- उत्कृष्ट से ५०२ से ५०९ धनुष्य की कायावाले जीव सिद्ध बन सकते हैं । और जघन्य अर्थात् कम से कम २ से ९ अंगुल कम ऐसे २ हाथ की शरीर की ऊँचाईवाले जीव मोक्ष में जा सकते हैं । इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि छठे आरे में जो सिर्फ १ हाथ की ही ऊँचाईवाले शरीरधारी जीव कदापि मुक्त हो ही नहीं सकते हैं । वर्तमानकालिक अपेक्षा से अपनी काया के २/३ भाग की अवगाहना में ही सिद्ध हो सकते हैं । भूतकालिक अपेक्षा से अपनी काया की अवगाहना में ही सिद्ध हो सकते है। जघन्य अवगाहनावाले सिद्ध कम हैं । उत्कृष्ट अवगाहनावाले सिद्ध असंख्य गुने हैं जबकि मध्यम कक्षा की शरीर की ऊँचाईवाले जीव सबसे ज्यादा असंख्य गुने हैं। इस तरह अधिक से अधिक और कम से कम कितनी शरीर की ऊँचाई अपेक्षित है यह सूचित किया १४३४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy