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चिन्ह शरीर की पहचान का वाचक बनता है। जबकि आत्मा के लिए दर्शन - ज्ञान - चारित्रादि के गुण ही उसकी पहचान के वाचक बनते हैं । द्रव्यलिंग में तो तीनों में से किसी भी लिंग से मोक्षगमन संभव है, लेकिन भावलिंग में दर्शन - ज्ञान- - चारित्र में से एक भी कम नहीं चलेगा। तीनों पूर्ण-संपूर्ण होने ही चाहिए ।
तथा लिंग शब्द से जुडे हुए अन्य ३ गृहस्थलिंग, स्वलिंग, और अन्यलिंग भी बताए गए हैं । इन्हें भी बाह्यद्रव्यलिंग कहते हैं । १) स्वलिंग में - रजोहरण - मुहपत्ति आदि मुनि वेषधारक तथा भाव से पंचमहाव्रत धारक ही मोक्ष में जाता है । २) गृहस्थलिंग में मात्र गृहस्थ की वेषभूषा रहती है, और भाव से ज्ञान - दर्शन - चारित्रादि की परिपक्वता संपूर्ण रहती है । ३) अन्यलिंगी - परिव्राजक - संन्यासी - तापसादि में भी द्रव्य से भगवा वेषधारीपनादि रहता है लेकिन भाव की भूमिका में दर्शन - ज्ञान - चारित्र का सम्यग् स्वरूप पूर्ण संपूर्ण स्वलिंगी जैसा ही रहता है । अतः बाह्य लिंग, द्रव्य लिंग चिन्हरूपवाचक बनता है। जबकि .. आभ्यन्तर कक्षा का लिंग सम्यक् दर्शनादि विद्यमान होने पर ही मुक्ति की प्राप्ति संभव है ।
५) तीर्थ द्वार - तीर्थंकर भगवंतों द्वारा स्थापित तीर्थ- शासन की उपलब्धि पाकर ही सिद्ध हो सकते हैं । अपवादरूप से तीर्थस्थापना के पहले भी मरुदेवी माता की तरह मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं । तथा तीर्थ के विच्छेद के काल में भी संभावना है। लेकिन ९९% सारी संभावना तीर्थ की संप्राप्ति के काल में ही संभव है । अतः तीर्थ द्वार भी सिद्ध बनने के लिए आवश्यक है ।
६) चारित्र द्वार - वैसे शास्त्रों में ५ प्रकार के चारित्र दर्शाए गए हैं लेकिन सभी प्रकार के चारित्र मुक्ति पाने में कारणभूत सहायभूत हैं । हेतुभूत हैं । अतः संसारी अवस्था में ही ये पाँचों चारित्र सहायक हैं। परन्तु ... मोक्ष में तो पाँचों प्रकार के चारित्र में से एक भी चारित्र नहीं होता है । परन्तु संसार में इन पाँचों चारित्रों की उपासना किये बिना तो मोक्ष की प्राप्ति संभव भी नहीं है । भूतकालिक दृष्टि से अनन्तर चारित्र और परंपरा चारित्र इन २ दृष्टियों से विचारणा की जाती है । १) अनन्तर चारित्र की अपेक्षा से यथाख्यात नामक पाँचवे चारित्र से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है । २) परंपर चारित्र की अपेक्षा से सामायिक, सूक्ष्म संपरायादि, यथाख्यात आदि ये तीनों चारित्र परंपर कारण बनते हैं । इस तरह ४ और ५ चारित्र भी परंपर रूप से सहायक सिद्ध होते हैं। इस तरह मोक्ष प्राप्ति के लिए चारित्र अनिवार्य है ।
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विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति "
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