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________________ १५) अनेक सिद्ध - ऊपर जैसे १ समय एक सिद्ध होने की बात की थी, अब यहाँ पर ठीक उसके विपरीत १ समय में अनेकों के सिद्ध होने की बात है । समस्त ढाई द्वीपों के मनुष्य क्षेत्र में से १ ही समय हो और उस १ ही समय में से यदि चारों तरफ से गणना करें तो उत्कृष्ट से कितने एक साथ मोक्ष में गए ? इसके बारे में शास्त्र में कहते हैं कि ... इस अवसर्पिणी काल की चौबीशी के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान का ८४ लाख पूर्व का आयुष्य जब पूरा हुआ, उसी समय उनके ९९ पुत्र, और ८ भरत चक्रवर्ती के पुत्र मिलाकर (भ० ऋषभदेव के पौत्र इस तरह. १ + ९९ + ८ = १०८ आयुष्कर्म एक साथ ही समाप्त हो गया । कितना बडा आश्चर्य होता है । इस प्रकार पिता, ९९ पुत्र तथा ८ पौत्र इन सबका आयुष्य एक ही समय में, एक साथ तथा एक ही साथ मोक्ष प्राप्त करना सचमुच आश्चर्यकारी घटना लगती है। फिर भी यह घटना हुई तो सही । हमारी छद्मस्थों की बुद्धि के बाहर की बात है । 1 सिर्फ १ ही समय के सूक्ष्मतम समय में... पिता-पुत्र और पौत्र तीन पीढि के १०८ जीवों का एक साथ आयुष्य समाप्त होना, सभी गुणस्थान के सोपानों के राजमार्ग पर ... केवली सर्वज्ञ बने हुए ... ४ अघाती कर्मों की प्रकृतियों का क्षय करके, योग निरोध करके मोक्ष में जाना । इसमें समय का न बदलना । समयान्तर न होते हुए उसी समय में समकाल में मोक्ष में जाना यह विश्व की आश्चर्यकारी घटना है । अनोखी - अद्भुत घटना है। पूरे ढाई द्वीप रूप मनुष्य क्षेत्र में से उस समय में अन्य कोई मोक्ष में नहीं गए और ये ऋषभदेवादि १०८ ही मोक्ष में गए । ऋषभदेव भ. के १०० पुत्र । बस, उनमें से सिर्फ भरतचक्रवर्ती ही शेष रहे और सभी ९९ एक साथ में भगवान के साथ मोक्ष में गए। तथा भरतजी के ८ पुत्र अर्थात् भ० ऋषभदेव के पौत्र थे । वे सब एक साथ एक ही समय में मोक्ष में गए । अतः अनेक सिद्ध का प्रकार बना । प्रज्ञापनासूत्र की वृत्ति में भिन्न भिन्न समय में भिन्न-भिन्न संख्या में मोक्ष में जाने की बात भी बताई है । 1 इस तरह उपरोक्त १५ प्रकार जो सिद्ध के बताए हैं वे सभी सिद्धों के भेद नहीं है । लेकिन सिद्ध बनने के पहले कौन कैसे थे ? किस कक्षा में रहकर मोक्ष में गए हैं उस दृष्टि से सिद्ध बनने के प्रकारों का वर्गीकरण करके... १५ भेद बताए हैं। इन १५ में से दो-दो १४१८ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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