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________________ I वैसे नहीं हैं । या उभयांगी नहीं हैं। इन कृत्रिम नपुंसकों में वेद की वासना का क्षय जब नौंवे गुणस्थान पर हो जाता है उसके पश्चात् आगे के गुणस्थान पर आरूढ होते हुए क्रमशः १४ वे गुणस्थान पर से मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं । जैसा कि दृष्टान्त दिया जाता हैगांगेय मुनि का । गांगेय ये कृत्रिम प्रकार के नपुंसक थे, वे भी केवलज्ञानादि सब कुछ पाकर मोक्ष में गए हुए हैं, ऐसा निर्देश नवतत्त्ववृत्ति में मिलता है । लेकिन ये गांगेय कौन ? इनका चरित्रात्मक इतिहास या ऐतिहासिक प्रमाण जरूर संशोधनीय है । श्री भगवती सूत्र में भी नरक में जानेवाले जीवों के संबंध में प्रश्नकर्ता गांगेय मुनि का नामोल्लेख जरूर मिलता है, लेकिन उन्हें नपुंसक के रूप में नहीं बताए हैं । अतः कौन से गांगेय ? यह जरूर संशोधन का विषय है । अतः नपुंसक वेद न लेते हुए कृत्रिम नपुंसक देहधारी जीव ही मोक्ष के अधिकारी बताए हैं। वैसे हजारों लाखों दृष्टान्त तो पुरुष लिंगधारी ही मोक्ष में गए जीवों के मिलेंगे । ११) प्रत्येक सिद्ध - शास्त्रों में ३ प्रकार से बोध पानेवाले जीव बताए गए हैं। एक को अपने आप ही बोध पानेवाले और दूसरे गुरु के उपदेश से बोध पानेवाले कहा है। अपने आप बोध पानेवालों में भी दो प्रकार के जीव होते हैं- एक तो संध्या के बदलते रंग, या मृत्यु या रोग-बिमारी आदि किसी भी प्रकार के वैराग्योत्पादक दृश्य को देखकर... कोई बोध - वैराग्य पाकर दीक्षा ग्रहण कर ले उसे प्रत्येक बुद्ध जीव कहते हैं । दूसरे जीवों में तथाप्रकार के मोहनीय आवरक कर्म के क्षीण होने से, पतले पडने से संसार की असारता समझकर वैराग्य वासित होकर दीक्षा ग्रहण कर ले वे स्वयंसंबुद्ध कहलाते हैं । और तीसरे वे हैं जो ..... गुरु के उपदेश से संसार को असार समझ कर वैराग्यवासित बनकर दीक्षा ग्रहण करते हैं वे बुद्ध-बोधित कक्षा के गिने जाते हैं । ये तीनों प्रकार के जीव केवलज्ञान पाकर मोक्ष में जा सकते हैं । और बस, १२) प्रत्येक बुद्ध सिद्ध- जो संध्या के बदलते रंग, वृद्धावस्था, मृत्यु बीमारी आदि किसी भी प्रकार के वैराग्योत्पादक दृश्यों - निमित्तों को देखते हैं । ... उस चिन्तन की धारा में उन्हें चारित्र ग्रहण कर आत्मा का कल्याण करने के भाव बढ जाते हैं । वे प्रत्येक बुद्ध की कक्षा के महापुरुष कहलाते हैं । दधिवाहन राजा के पुत्र करकंडु जिनका नाम था । वे राजकुमार अपनी राजधानी में परिभ्रमण कर रहे थे... कि रास्ते में उन्होंने एक बूढे बैल को देखा । चलने में अशक्त, कमजोर, रोगिष्ठ तथा मृत्यु के इन्तजार । आध्यात्मिक विकास यात्रा १४१४
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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