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________________ तथा समुद्रों के बीच के पहाडों पर जाकर कोई रहे और वहाँ ध्यान-साधना करे तो वहाँ से भी मोक्ष में जा सकता है। इसलिए इसकी भी गणना मोक्ष क्षेत्र में की गई है । परन्तु ऐसे १०% जीव हो सकते हैं। परन्तु प्रधान रूप से तो २५ लाख योजन का विस्तार ही ९०% मनुष्यों के मोक्ष में जाने के लिए उपयुक्त गिना जाता है । अब इन २५ लाख योजन विस्तारवाले २ ॥ द्वीप में भी ५ भरत क्षेत्र + ५ ऐरावत क्षेत्र और ५ महाविदेह क्षेत्र जो हैं वे ही मोक्षगमन योग्य क्षेत्र है । बस, इन १५ कर्मभूमिवाले क्षेत्रों में से ही मोक्ष में जा सकते हैं । अन्यथा तदतिरिक्त कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनकी गणना अकर्मभूमि के रूप में की जाती है । वहाँ से कोई भी जीव मोक्ष में नहीं जाता है । १५ कर्मभूमि के क्षेत्रों की अपेक्षा अकर्मभूमि के क्षेत्र दुगुने ३० हैं । वहाँ न तो भगवान, न तो है और न ही धर्म है। अतः ऐसी अकर्मभूमियों में से अनन्तकाल में भी कोई मोक्ष में नहीं गया और न हीं जाएगा। हाँ, कर्मभूमि में जन्म लिया हुआ कोई यहाँ की भूमि में आकर क्षपक श्रेणी का प्रारम्भ करके मोक्ष में जा सकता है । इसलिए ४५ लाख योजनवाले समस्त मनुष्य क्षेत्र की गणना की गई है। 1 इन क्षेत्रों के आधार पर.... . मनुष्यों की उत्पत्ति के प्रकार गिने गए हैं । १५ कर्मभूमिज + ३० अकर्मभूमिज + और ५६ अंतर्द्वीपज कुल मिलाकर १०१ प्रकार होते हैं । ये १०९ देश - क्षेत्र हैं । अतः उन देश - क्षेत्रों में उत्पन्न हुए मनुष्यों को भी देश - क्षेत्र की पहचान के आधार पर विभक्त करके प्रकार के रूप में गिने गए हैं। इनमें भी १०१ प्रकार के गर्भज पर्याप्त + १०१ प्रकार के गर्भज अपर्याप्त तथा १०१ प्रकार के संमुर्च्छिम इस तरह कुल ३०३ प्रकार दर्शाए गए हैं। (विशेष वर्णन पहले किये हुए विस्तार से समझ लेना) । ये ३०३ प्रकार के सभी मनुष्य मोक्ष में जाने के अधिकारी नहीं होते हैं। हाँ, जन्मगत गति-जाति से तो मनुष्य ही गिने जाएंगे। लेकिन १०१ संमुर्च्छिम + तथा १०१ गर्भज अपर्याप्त मनुष्य जीवों का तो मोक्ष में जाने का कोई सवाल ही नहीं बचता है । क्योंकि इनके पास तो पर्याप्त - पूर्ण आयुष्य ही नहीं है । अब रही बात ३०३–२०२ प्रकार के मनुष्यों की । ये १०१ गर्भज पर्याप्त जरूर है, आयुष्यादि पूरा है लेकिन ३० अकर्मभूमिज तथा ५६ अन्तद्वीर्पज मनुष्य ऐसे क्षेत्र में पैदा हुए हैं जहाँ देव-गुरु-धर्मादि की किसी भी प्रकार की सामग्री उपलब्ध ही नहीं है । अतः क्या करें ? १०१ में से ३० + ५६ = ८६ प्रकार और घट गए। परिणाम स्वरूप मात्र १५ कर्मभूमिज मनुष्य ही बचे । बस, ३०३ प्रकार के मनुष्यों में से मात्र ये १५ प्रकार ही शेष बचे, जो मोक्ष में जाने के अधिकारी कहलाते हैं और इनकी योग्यता में क्षेत्रजन्य योग्यता भी अपना पूरा हिस्सा = १०१ 1 विकास का अन्त "सिद्धत्व की प्राप्ति " = १३८३
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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