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बनानी इसकी प्रक्रिया " गुप्ति” नामक संवर धर्म के स्वरूप वर्णन में बताई है । सम्यग् पूर्वक अच्छी तरह मन-वचन-काया के तीनों योगों का निग्रह करना इसे गुप्ति धर्म कहते हैं । जैसे कछुआ अपने अंगोपांगों को अंदर संकोच लेता है ठीक उसी तरह योगी बननेवाले को अपने योगों को अच्छी तरह संकोचन करके गुप्त कर लेना चाहिए। योगी बनने के लिए मनादि योगों का निग्रह करना और अयोगी बनने के लिए मनादि तीनों योगो का निरोध करना पडता है । बस, इस निग्रह और निरोध का अर्थ और प्रक्रिया अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए । निग्रहकरण की प्रक्रिया ४ थे से १२ वे गुणस्थान पर्यन्त क्रमशः उत्कृष्ट, उत्कृष्टतम कक्षा की होती है । जबकि निरोध करने की प्रक्रिया सिर्फ १३ वे गुणस्थान के अन्त में ही होती है । पहले योगों को सुधार कर अच्छा बनाना है वह निग्रह है । जबकि योगों को सर्वथा रखना ही नहीं उनकी प्रवृत्ति भी नहीं रखनी यह निरोध है । अतः पहले वर्षों तक योग निग्रह की प्रक्रिया करनेवाला ही अन्त में योग निरोध कर पाएगा। योगनिग्रह वर्षों तक करना पडता है जबकि योग निरोध निर्वाण पूर्व सिर्फ १ अन्तर्मुहूर्त के समय में ही हो जाती है ।
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मिथ्यात्व
सास्वादन
अविरत
आध्यात्मिक विकास यात्रा
देशविरत
अप्रम
अपूर्वकरण
अनिवृत्त
सूक्ष्म संप
उपशांत मोह
क्षीण मोह
केवली
अयोगी