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________________ वर्तमान चौबीशी के २४ तीर्थंकर भगवंतों का कुल आयुष्यकाल उपरोक्त तालिका में दिया हैं। उन्होंने अपने जीवन में गृहस्थाश्रम में कितना काल बिताने के पश्चात् दीक्षा ग्रहण की यह भी कोष्ठक में देखने से ख्याल आएगा। तथा दीक्षा लेने के पश्चात् कितने समय तक वे छद्मस्थ रूप में रहे? अर्थात् कब तक उन्हें केवलज्ञान नहीं हुआ? जब तक केवलज्ञान नहीं होता है । तब तक के उस अन्तरालकाल को छद्मस्थ काल कहते हैं । यद्यपि तीर्थंकर जो विशिष्ट कक्षा के महापुरुष हैं उनको जन्म से ही गर्भ काल से ही ३ ज्ञान पूर्ण होते हैं और दीक्षा ग्रहण के समय ४ था मनःपर्यव ज्ञान पूर्ण हो जाता है । अब ५ ज्ञान में से ४ ज्ञान के मालिक तो वे बन गए । फिर भी जब तक पाँचवा केवलज्ञान प्राप्त नहीं होता है तब तक वे छद्मस्थ ही कहे जाते हैं। उपरोक्त नियम तीर्थंकर के सिवाय अन्य किसी भी सामान्य केवली के लिए नहीं है । अतः वे जन्मजात ३ ज्ञानी नहीं होते हैं तथा दीक्षा ग्रहण करने के समय ४ था ज्ञान भी अनिवार्य रूप से नहीं होता है। फिर भी उनको आगे केवलज्ञान हो जाता है। चाहे वे गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी ध्यानादि करके केवलज्ञान प्राप्त करें या फिर... दीक्षा लेने के पश्चात् ध्यानादि की साधना करके केवलज्ञान प्राप्त करे । कर सकते हैं। लेकिन तीर्थंकर तो अनिवार्य रूप से दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् ही केवलज्ञान प्राप्त करेंगे। पहले से ही गृहस्थाश्रम में कभी नहीं। . २४ तीर्थंकरों का छद्मस्थावस्था का काल देखने से पता चलेगा कि किसका कितना कम है और किसका ज्यादा है ? कम से कम १ अहोरात्रि का छद्मस्थ काल मल्लीनाथ भगवान का है । बस, आज दीक्षा ली और कल केवलज्ञान हो गया। इस तरह सिर्फ १ दिन रात का ही छास्थ काल का अन्तराल समय बीच में निकला। शेष सब केवलज्ञानी के रूप में एक मात्र ये १९ वे तीर्थंकर मल्लीनाथ ही थे। जिन्होंने १००० राजकुमारों के साथ में दीक्षा ग्रहण की और सिर्फ १ ही दिन के बाद केवली बन गए । भगवान नेमिनाथ सिर्फ ५४ दिन तक छद्मस्थ रहे फिर केवली बने । श्री पार्श्वनाथ प्रभु ८४ दिन तक छद्मस्थ रहे फिर केवली भगवान बने । ६ढे पद्मप्रभु भगवान से लगाकर १३ वे विमलनाथ भगवान तक के ८ तीर्थंकर भगवन्तों ने सिर्फ कुछ महीनों के अन्तराल काल में छद्मस्थ रहने के पश्चात् केवलज्ञान पाया। २४ वे तीर्थपति हमारे आसन्न उपकारी श्री महावीरस्वामी भगवान १२ वर्ष तक दीक्षा के पश्चात् छद्मस्थ रहे, फिर केवलज्ञान पाए । जबकि इस चौबीशी में एक प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ही ऐसे रहे, जिन्होंने सबसे लम्बा काल छद्मावस्था में बिताया। १००० वर्ष तक वे छद्मस्थ रहे । फिर चारों घाति कर्मों का क्षय करके आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १३१९
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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