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लम्बा-चौडा रहता है । अतः उसे दीर्घ स्थिति कहते हैं । जैसे कि गीले ढेले में नमी-पानी रहता है । अतः मिट्टी या कीचड दिवाल पर चिपकता है । इसलिए कषायों का एक रस बनता है । वह कर्माणुओं को आत्मा के साथ दीर्घ काल तक चिपकाने में कारणभूत बनता है। लेकिन जब कषाय सर्वथा क्षय हो जाते हैं तब मनादि योग उसकी चंगुल से मुक्त हो जाते हैं । अब कषायभाव से मुक्त (रहित) मनादि योग सामान्यरूप से प्रवृत्ति आदि करेंगे उससे भी कर्माणुओं का बंध होगा लेकिन वह... दूसरे चित्र में है वैसे नमी.. पानी सूख जानेवाले ढेले की तरह सूखे हुए कर्माणु मात्र आत्मा के प्रदेशों पर लगेंगे जरूर परन्तु किसी भी प्रकार का रस न होने से वे ज्यादा देर तक लगे हुए-चिपके हुए नहीं रहेंगे। जैसे बॉल दिवाल पर न तो ठहरती है और न ही उसका दाग लगता है । दाग लगने में भी मिट्टी के अंश ही वहाँ चिपकते हैं । शास्त्रकार कहते हैं कि
पयइ सहावो वुत्तो ठिई कालावहारणं। .
अणुभागो रसोणेओ, पएसो दल संचओ। ४ प्रकार के बंधों में प्रक्रति बंध स्वभाव को कहते हैं । अर्थात् प्रकृति होने से कर्म के आवरण आत्मप्रदेशों पर आ जाने से आत्म गुण आच्छादित हो जाएंगे और ऊपर कर्म परमाणु हावी हो जाएंगे। अतः आवृत्त आत्मगुणों की ज्ञानादि की प्रकृति (स्वभाव) का व्यवहार सामने नहीं आएगा। परन्तु कर्मावरण का स्वभाव ही सामने आएगा । आत्मगुणों से कर्मजन्य स्वभाव सर्वथा विपरीत ही है और इस विपरीत भाव का जो स्वभाव व्यवहार में बाहर आएगा वह आत्म गुणों का घात करके विपरीत रूप में ही बाहर आएगा। जैसे बल्ब पर काला कपडा ढक कर जलाने से बल्ब के प्रकाश के बजाय उस काले कपडे की छाया ही व्यवहार में सामने आएगी। ठीक उसी काले कपडे की तरह यहाँ काले कर्मों की असर व्यवहार में बाहर दिखाई देगी। वह आत्मगुण से विपरीत होगी । अज्ञान, अदर्शन मोह-राग-द्वेष अशक्ति आदि जितने भी बाह्य व्यवहार में आएंगे वे विपरीत ही आएंगे। यही कर्म की प्रकृति है, स्वभाव है । इसलिए प्रकृतिबंध कर्म स्वभाव को कहा है।
स्थिति बंध काल की अवधि का सूचक है । एक बार बंधा हुआ कर्म आत्मप्रदेशों पर कहाँ तक? कितने वर्षों तक लगा रहेगा? यह सूचित करता है। जैसे सीमेन्ट में पानी का रस गिरते ही वह जमकर पत्थर-सा बंध जाता है । ठीक उसी तरह ग्रहित कार्मण वर्गणा के परमाणुओं में लेश्याओं क्रोधादि कषायों तथा आर्त-रौद्रादि ध्यान की जैसी परिणति कारस उसमें डालेंगे वैसा कर्म बंध होगा। इस रस के घोल से कर्म-परमाणु इकट्ठे होकर चिपकेंगे। और रस के आधार पर स्थिति बंध के काल का आधार रहता है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा