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________________ लिया। ध्यानावस्था मै प्रभु ने इस देह को सदा के लिए छोड दिया और सिद्धावस्था मुक्ति के धाम में सदा के लिए बिराजमान हो गए। ___इधर ४८ घंटे २ दिन से सतत निरंतर अमृतमयी देशना चल रही थी। वह केवलज्ञान का दीपक बुझ जाने के कारण समाप्त हो गई। सभी प्रभु के वियोग में विलाप करते-करते ... झुंड में इकट्ठे होकर जाते जाते रोते जाते थे। कार्तिक शुदि १ की प्रभात को आने के लिए निकले गौतमस्वामी ने मार्ग में सबको रोते हुए देखकर कारण पूछा । लोगों ने कहाअनन्त उपकारी वीर प्रभु सबको छोड़कर चले गए। बस, इस शोक संदेश को सुनते ही गौतम पर मानों पहाड टूट पडा हो वैसे हतप्रभ बन गए । वीर... वीर.... रटते-रटते. ..गौतम विलाप करने लगे। मानों जैसे माता की मृत्य में किसी छोटे बच्चे की स्थिति होती है वैसी स्थिति वीर प्रभु के वियोग में गौतम की हो गई। ... हे... वीर ... ! हे.... वीर .... ! करते.... करते गौतम प्रशस्त राग भाव में वीर को याद करते थे। इतने में अचानक...बिजली झपकने की तरह.... एक झटके में वीतराग शब्द याद आ गया...। वीर शब्द यह वीतराग शब्द का ही संक्षिप्त रूप है। वीर के 'वी' अक्षर से वीत तथा 'र' अक्षर से राग याद आ गया । इससे वीर शब्द वीतराग का ही संक्षिप्त स्वरूप है या वीतराग शब्द वीर शब्द का ही विस्तृत बडा शब्द है । पहले गौतम को वीर शब्द याद आया था इससे वीर से वीतराग शब्द याद आ गया। वीतराग शब्द के साथ उसका अर्थ भी सामने स्मृतिपटल में आया। जो साफ बताता है कि...जो रागरहित है, वही वीतराग है, और जो द्वेषरहित है वही वीतराग है।...ओहो... हो ! मैं जिसको वीर . . . वीर कहता था वे तो वीतराग हैं सर्वथा रागभावरहित हैं। मैं तो रागभाववाला हूँ, इसलिए मुझे जरूर वीर पर राग है । लेकिन वीर तो वीतराग है अतः उनको तो मेरे ऊपर राग रखने का या रहने का रत्तीभर भी कारण ही नहीं है । ऐसे वीतराग का सही स्वरूप समझने में आते ही गौतम भी अपने आपके लिए इसी प्रक्रिया को ढूँढने लगे। बस, मुझे भी वीतराग ही बनना है । और यदि वीतराग बनना है तो वीर का राग भाव भी घटाना ही पडेगा । अब आत्मराग...शुद्धआत्मभाव बढाना ही एक मात्र विकल्प है । बस, ज्ञानी को क्या कमी? जहाँ ज्ञान का खजाना अंदर पास में ही हो उसे प्रगट करने में क्या देर लगती है ? बस, अब वीतराग बनने के लिए कमर कस ली और ध्यान की धारा शुरु हो गई। जो गाडी आगे निकल चुकी है उसे वापिस पीछे मोडने में क्या देर लगती है ? यही तो प्रतिक्रमण है । अतिक्रमण से प्रतिक्रमण भाव में आना है । लग गई शुक्ल ध्यान की धारा । विद्युत संचार चालु ही हो तो फिर बटन दबाते ही लाइट होने में आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२९१
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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