SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस नाटक में गुरु अषाढाचार्य ने भी हिंसादि की काफी प्रवृत्ति की । आखिर इस दैवी माया के नाटक का भेद खुला... आचार्यश्री को सब स्पष्ट ख्याल आ गया और वे अपने आप मन ही मन पश्चाताप करने लगे। पश्चाताप की तीव्रता बढती ही गई... शास्त्र सभी सच्चे ही है, सभी तत्त्वों का अस्तित्व है, यह बात सही है । निरर्थक नास्तिकता के विचार किये इसके लिए क्षमाभाव की धारा में ध्यान की धारा में ऊपर चढते गए... परिणाम स्वरूप शुक्लध्यान के शुद्धतम अध्यवसायों में क्षपकश्रेणी में चारों घाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञानी बनकर मोक्ष में गए । वैचारिक भूल का पश्चाताप भी केवलज्ञान से मोक्ष तक पहुँचा देता है। चन्दनबाला और मृगावती साध्वी को केवलज्ञान परमात्मा महावीर प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण करके साध्वी बनी हुई चन्दनबाला और मृगावती साध्वीजीयाँ जो गुरुणी और शिष्या बनी थी, एक बार चन्द्र-सूर्य अपने मूल विमान सहित सर्वज्ञ वीरं प्रभु को वन्दनार्थ आए हुए थे । अतः रात्रि में भी प्रकाशमान दिन की भ्रमणा से मृगावती साध्वीजी वीर प्रभु को वन्दनादि करके वहीं बैठी रही। जबकि चन्दनाजी आ चुकी थी। जब सूर्य-चन्द्र पुनः चले गए तब पुनः रात्रि जानकर जब मृगावतीजी उपाश्रय स्थान में पधारी तब गुरुणीजी चन्दनाजी ने... मृगावती को हल्का सा थोडा उपालम्भ दिया। पुनः चन्दनाजी निद्राधीन हो गई। लेकिन २ शब्द सुनकर मृगावतीजी चिन्ताग्रस्त होकर आत्मनिरीक्षण करने लगी। पश्चाताप की धारा में इन लघुकर्मी आत्मा ने तीव्रता से अपने कर्मों की निर्जरा करनी शुरू की । शरीर से वहीं स्थिर बैठी है लेकिन आत्मा ध्यान में कितनी आगे बढ गई । आखिर में क्षपकश्रेणी पर चढकर केवलज्ञान प्राप्त किया। अभी रात्रि शेष थी। एक बडा सांप वहाँ से पसार होता हुआ चन्दनाजी के पास से जा रहा था। रात्रि के अन्धेरे में भी सर्वज्ञ केवली तो बिना आंख खोले भी आसानी से सबकुछ देख सकते हैं । अतः केवली बनी हुई मृगावतीजी ने सांप के जाने के रास्ते में से गुरुणीजी का हाथ ऊपर उठा लिया। सांप आसानी से निकल गया। अब गुरुणी जी जाग गई। और आश्चर्य से मृगावती के पूछा, क्या बात है, मेरा हाथ क्यों उठाया? जवाब में मृगावतीजी ने कहा.. साँप आ रहा था, इसलिए । चन्दनाजी ने विस्मय कारक ध्वनि से पूछा, अरे ! इतने अन्धेर में और वह भी काला साँप दिखाई कैसे दिया? मृगावतीजी ने जवाब दिया कि आपकी कृपा से प्राप्त ज्ञान से दिखाई दिया। इतने शब्दों से चन्दनाजी रहस्य समझ गई । अरे ! आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना १२८३
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy