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________________ मूलातिशय या सहजातिशय तथा प्रातिहार्य ८ मिलाकर कुल १२ गुण होते हैं । ये १२ तीर्थंकरों के गुण हैं । यद्यपि ये १२ गुण आत्मगुण नहीं हैं । प्रातिहार्यादि बाहरी हैं। ये सब तो तीर्थंकर नामकर्म की पुण्यप्रकृति के विशिष्ट उदय के कारण हैं। परन्तु आभ्यन्तर आत्म वैभव तो ज्ञानादि ४ है । १३ वे गुणस्थान पर क्षपकश्रेणी के मार्ग से पहुँचे हुए तीर्थंकर भगवंतों का यह स्वरूप है। यह वैभवी स्वरूप है। याद रखिए कि ये गुण ही तीर्थंकर को छोडकर इनके सिवाय अन्य किसी में भी नहीं होते हैं । अन्य किसी व्यक्तिविशेष, या भगवानों में, या किसी में भी ये गुण न तो होते हैं, या न ही दृष्टिगोचर होते हैं । इतना ही नहीं, १३ वे गुणस्थान पर पहुँचे हुए, लेकिन तीर्थंकर नामकर्म के पुण्योदय से रहित जो सामान्य साधक होते हैं, या अन्य कोई गणधरादि, आचार्य, उपाध्यायादि साधु हो या साध्वीजी महाराज भी को, या कोई चौथे गुणस्थान से सीधे ही श्रावक-श्राविका भी क्षपक श्रेणी का प्रारम्भ करके सीधे ही १३ वे गुणस्थान पर जो पहुँच जाय वह भी आत्म- गुणों का वैभव समान रूप से जरूर प्राप्त करेगा। लेकिन तीर्थंकर नामकर्म की पुण्यप्रकृति न होने के कारण ये १२ गुण, ३४ अतिशय, वाणी के ३५ गुण, समवसरण, आदि किसी भी प्रकार का वैभव प्राप्त नहीं करेगा । इसलिए १३ वे गुणस्थान पर अलग-अलग प्रकार के साधक होते हैं । अनन्त चतुष्टयी तीर्थंकर बननेवाली हो या तीर्थंकर न बननेवाली ऐसी किसी भी प्रकार की आत्मा जब क्षपक श्रेणी पर आरूढ होती है तब ४ घाती कर्मों का क्षय करने का मुख्य लक्ष्य लेकर आगे बढती है । पहले भी लिख आया हूँ कि ... एक बार क्षपक श्रेणी का प्रारम्भ करनेवाला साधक वापिस कभी गिरता ही नहीं है । ८ वे गुणस्थान से कर्मक्षय करते हुए वह ९ वे, १० वे, १२ वे से आगे बढता हुआ सीधा १३ वे गुणस्थान पर आकर ही विश्रान्ति लेता है । सर्व प्रथम ८ कर्मों के मुख्य राजा मोहनीय कर्म का क्षय करके १२ वे गुणस्थान पर वीतरागता प्राप्त कर लेता है । फिर १२ वे गुणस्थान के चरम समय में... शेष ३ घाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान, केवलदर्शन तथा अनन्तवीर्य के गुणों को प्रगट करके १३ गुण पर योगी - केवल बनता है । आध्यात्मिक विकास यात्रा १२६२
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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