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१) अशोक वृक्ष - परमात्मा जब समवसरण में बिराजमान होकर धर्म देशना देते हैं उस समय देवता समवसरण के मध्य केन्द्र में एक विशाल अशोक वृक्ष की रचना करते हैं जो पूरे समवसरण पर फैला हुआ रहता है। जिसकी शीतल छाया में सभी बैठते हैं। अशोक शब्द में 'अ' अक्षर निषेधवाची है। शोक का न रहना... निषेध होने के कारण अशेक नाम सार्थक सिद्ध होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि इस वृक्ष के नीचे आकर वैठनेवाले सभी शोकरहित होकर देशना श्रवण करते हैं । सर्वथा ताप - संताप, दुःख - खेदरहित होते हैं । यह अशोक वृक्ष प्रभु की अवगाहना (ऊँचाई) से १२ गुना ज्यादा ऊँचा होता है । १ योजन भूमि पर फैला हुआ रहता है । इतना इसका विस्तार है ।
२) सुरपुष्पवृष्टि - देवतागण चारों तरफ पुष्पवृष्टि करते हैं । समवसरण के आसपास के १ योजन परिसर में चारों तरफ सुवासित पुष्पों की वृष्टि करके वातावरण को सुगंध से भर देते हैं । जानु (घुटने) पर्यन्त यह वृष्टि होती है । यह दूसरा प्रातिहार्य है ।
३) दिव्यध्वनि - समवसरणस्थ प्रभु जब देशना देते हैं तब उनकी देशना में एक प्रकार की दिव्यता आती है। चारों तरफ सभी प्रभु देशना को अच्छी तरह सुन सके इसके लिए देवता प्रभु देशना को दीर्घ करते हैं । प्रभु मालकोश राग में देशना देते हैं । सभी सुननेवाले श्रोताओं को अमृत के आस्वाद समान सुख उपजता है । सभी जीवों को समान रूप से सुनाई देती है । द्राक्ष रस के समान मधुर लगता है । देवतागण भी बांसुरी बजाकर उसमें सूर मिलाते हैं । देवतादि बारह पर्षदा के सभी श्रोता श्रवण करने में तल्लीन बन जाते हैं ।
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४) चामरद्वय - परमात्मा समवसरण में बिराजमान होते हैं, देशना देते हैं, तब • देवतागण प्रभु के दोनों बाजु चामर वीझते हैं। वैसे प्रभु के शरीर पर कोई प्रस्वेद होता ही नहीं है फिर भी भक्तिभावना वश देवता चामर वीझते हैं ।
५) सिंहासन - समवसरण में देशना देने के लिए बैठने हेतु देवता सिंहासन की रचना करते हैं । यह व्याघ्रचर्म न समझें... यह स्फटिक का बना हुआ होता है। ऐसे सिंहासन पर बैठकर प्रभु देशना देते हैं ।
६) भामण्डल - भामण्डल को आभामण्डल भी कहते हैं । घाती कर्मों के क्षय से अनन्तज्ञानादि प्रगट होने के कारण शरीर से तेजःपुंज निकलता है । इससे प्रभु की तेजस्विता अनेकगुनी बढ जाती है । जिससे श्रोताओं को प्रभु का मुख दिखाई भी न दे, ऐसी स्थिति में देवतागण प्रभु के मस्तिष्क के पीछे भामण्डल की रचना करते हैं । जिससे अतिरिक्त
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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