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जब मोक्ष में जाने की इच्छा होगी तब भी यही करना पडेगा। तो फिर आज इसी भव में क्यों नहीं करना? जब आज सारी अनुकूलता सुविधा उपलब्ध है तो फिर प्रमादवश-आलस्य के कारण आज न करना या छोड देना मूर्खता सिद्ध होगी। अतः इस नित्य शाश्वत सर्वथा समान स्वरूपको समझकर आज करना इसी में बुद्धिमत्ता सिद्ध होगी। इसीलिए गुणस्थान क्रमारोह का ज्ञान-विज्ञान समझकर सबको आगे-आगे के गुणस्थान के सोपान चढने के लिए उद्यमशील होना ही चाहिए। एक-एक पद की आराधना से तीर्थंकरपना
यद्यपि २० पदों का स्वरूप बताया है । संयुक्त रूप से २० पदों की आराधना करके उत्कृष्ट से तीर्थंकर नामकर्म बांधा जाता है, फिर भी ऐसा नियम नहीं है कि बीसों पदों की संयुक्त आराधना करके ही तीर्थंकर नाम कर्म बांध सकते हैं । जी नहीं।... एक पद की आराधना करके भी तीर्थंकर नामकर्म बांधा जा सकता है । भगवान महावीर प्रभु की आत्मा ने २५ वे नंदनराजर्षि के भव में बीसों पदों की संयुक्त आराधना उत्कृष्ट रूप से करके तीर्थंकर नामकर्म बांधा है । भगवान आदिनाथ की आत्मा ने ११ वे भव में बीश में से एक ही पद की आराधना करके तीर्थंकर नामकर्म उपार्जित किया था। इस से यह सिद्ध होता है कि... किसी भी एक पद की आराधना करके भी तीर्थंकर नामकर्म बांधा जा सकता है । महाविदेह में जाकर तीर्थंकर बननेवाले अनेक महात्माओं, जिन्होंने... एक एक पद की आराधना करके तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया है उनके नामादि निम्न प्रकार हैं१) अरिहंत पद की आराधना करके–देवपाल ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है।
२) सिद्ध पद की आराधना करके हस्तिपाल राजा ने तीर्थंकर नामकर्म बाधा है। . ३) प्रवचन पद की आराधना करके- जिनदत्त शेठ ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है ।
४) आचार्य पद की आराधना करके- पुरुषोत्तम महाराज ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। ५) स्थविर पद की आराधना करके- पद्मोत्तर महाराज ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है।। ६) उपाध्याय पद की आराधना करके- महेन्द्रपाल महाराज ने ती. नामकर्म बांधा है। ७) साधु पद की आराधना करके- वीरभद्र ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। ८) ज्ञान पद की आराधना करके–जयन्तराज ने तीर्थंकर नामकर्म बांध है। ९) स. दर्शन पद की आराधना करके–हरिविक्रम ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। १०) विनय पद की आराधना करके– धनशेठ ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। ११) चारित्र पद की आराधना करके- वरुणदेव ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है। १२) ब्रह्मचर्य पद की आराधना करके- चन्द्रवर्मा ने तीर्थंकर नामकर्म बांधा है ।
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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