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वर्ष में २० ओली के रूप में तपश्चर्या की जाती है । एक ओली में २० उपवास ६ महीने के १८० दिन के काल में करने के रहते हैं । फिर दूसरे ६ महीने में दूसरे पद के २० उपवास की ओली आएगी। इस तरह १ वर्ष में २ और १० वर्षों में २० ओली होगी ।१ ओली के २० उपवास ऐसी २० ओली के २० x २० = ४०० उपवास होंगे। तब यह वीशस्थानक तप पूर्ण होता है । लेकिन उत्कृष्ट भाववाले साधक कोई ६ महीने से भी कम दो महीने का भी समय ले सकते हैं । और कोई १ महीने का भी समय ले सकता है । इस तरह कम काल में भी तप पूर्ण कर सकता है । तथा साथ ही... तप का प्रमाण भी बढा सकते हैं । कोई अट्ठम के ३ उपवास, छटे के २ उपवास, या १ उपवास, या फिर इससे भी कम आयंबिल-एकासणे के तप से भी विशस्थानक तप की आराधना कर सकते हैं। ऐसा वर्तमान प्रवाह है।
नंदनराजर्षि की तपश्चर्या
नयसार के पहले जन्म से सम्यक्त्व का बीज बोकर मोक्षमार्ग पर आरूढ होकर तीर्थंकर बनने की दिशा में आगे प्रयाण करनेवाले परम तारक श्री महावीर परमात्मा का जीव आगे बढते-बढते २५ वे जन्म में नंदन नामक राजा बनते हैं । २५ लाख वर्ष का उनका कुल आयुष्य है । उसमें से २४ लाख वर्ष का काल संसार में राजपाट की व्यवस्थादि में बिताकर शेष १ लाख वर्ष अवशिष्ट रहने पर महाभिनिष्क्रमण करते हुए .... संसार का त्याग करते हुए चारित्र ग्रहण करके आदर्श साधु बने । दीक्षा लेकर वीशस्थानक के बीसों पदों की साधना करने में मन लगा दिया। घोर तपश्चर्या करने में जुड़ गए। बस, किसी भी स्थिति में तीर्थंकर भगवान बनने का लक्ष्य अत्यन्त उत्कट कर दिया और सिर्फ १ लाख वर्ष के सीमित आयुष्य काल में ११८०६४५ (११ लाख ८० हजार ६४५) की बडी विशाल संख्या में मासक्षमण किये । आप सोचिए ! सिर्फ १ लाख वर्ष का ही सीमित काल है। १ वर्ष के १२ महीने होते हैं । १ महीने के उपवास को मासक्षमण कहते हैं। ऐसे १ वर्ष के १२ मासक्षमण हो जाय तो १ लाख वर्ष के १००००० x १२ = १२००००० बारह लाख मासक्षमण हो सकने संभव हैं। लेकिन बीच में पारणे के लिए भी अवकाश तो चाहिए । अतः इन १२००००० महीनों के काल में नंदन राजर्षि ने १२०००००-११८०६४५ = १९३५५ महीने शेष बचे।.. ये महीने बीच में किये पारणे के महीने हैं। इस तरह नंदन राजर्षि ने कभी २ मासक्षमण, कभी ३, कभी ४, कभी ५, और कभी ६ मासक्षमण भी साथ किये और इस तरह १२ लाख महीनों के काल में
आत्मिक विकास का अन्त आत्मा से परमात्मा बनना
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