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________________ अर्थात् १ निद्रा-निद्रा, १) प्रचला–प्रचला, एवं ३) थीणद्धि ये तीनों प्रकृतियाँ बंध में मात्र दूसरे गुणस्थान पर्यन्त ही रहती है। लेकिन उदय और उदीरणा में छठे प्रमत्त साधु के गुणस्थान तक रहती है। विशेषावश्यक भाष्य में छठे गुणस्थानवाले प्रमत्त साधुओं को जिनको थीणद्धि निद्रा का उदय होने से कितनी घोर हिंसा आदि की उसके दृष्टान्त दर्शाए हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि.. छट्टे प्रमत्त गुणस्थान के साधु महाराज तक थीणद्धि निद्रा का उदय रहता है और छ जीवनिकाय की हिंसा-विराधना के त्यागी सर्व जीव रक्षक-पंचमहाव्रतधारियों को भी हिंसादि की प्रवृत्ति यह कर्म करा देता है । निद्रा-निद्रा की सत्ता ८ वे अपूर्व गुणस्थान के नौंवे भाग तक रहती है। तथा प्रचला–प्रचला और थीणद्धि इन दोनों प्रकृतियों की सत्ता तो नौंवे गुणस्थान के प्रथम भाग तक रहती है। फिर उनका भी क्षय हो जाता है । इस तरह १२ वे गुणस्थान तक दर्शनावरणीय कर्म की कुल नौं प्रकृतियों में से ४ दर्शन तथा १ निद्रा और २ प्रचला ये ६ प्रकृतियाँ बराबर सत्ता में रहती हैं। साधक भी क्षपक वृत्ति का है और १२ वाँ गुणस्थान भी क्षपक श्रेणी का है । कर्मक्षय करने की क्षपक साधक की शुक्लध्यान के दूसरे प्रकार की ध्यान साधना भी काफी प्रबल है तीसरी तरफ वीतरागता का भाव भी काफी ऊँचा प्राप्त है । इसलिए वह भी चिन्ता नहीं है। प्रबलतम ध्यान की साधना में कर्मों का क्षय-निर्जरा भी अद्भुत कक्षा की करता हुआ. आगे बढ़ता है। ___ इस तरह १२ वे गुणस्थान क्षीण मोह के अंतर्मुहूर्त काल के असंख्य समयों में से अन्तिम असंख्यातवे समय के एक समय पहले तक अर्थात् अन्त से दूसरे समय तक ज्ञानावरणीय की ५-प्रकृतियाँ, दर्शनावरणीय की ६ (४ दर्शन + २ निद्रा-प्रचला की) प्रकृतियाँ, अन्तरायकर्म की ५ प्रकृतियाँ = ३ घाती कर्मों की कुल १६ प्रकृतियाँ जो सत्ता में पडी हैं, उनका क्षय करना है। और सामने काल सिर्फ २ समय का ही शेष बचा है। अब आप सोचिए, कि क्षपक साधक की कर्मरूपी इन्धन को भस्मीभूत करने की ध्यानाग्निरूप शक्ति कितनी सशक्त और बलवान होगी? अनादि कालीन कर्मबंध की आदत आज दिन तक जीव इस संसार चक्र में अनादि काल से जब अज्ञान-मोह–मिथ्यात्वादि वश होकर कर्म बांधता था तब कितना भारी भयंकर कर्म १२१२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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