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की उत्पत्ति होती है । इसे शुरुआत प्रारम्भ कहते हैं । इसलिए आत्म गुण को सादि-अनन्त की कक्षा के कहे गए हैं। सादि अर्थात् यहाँ आदि-उत्पत्ति सहित । शुरुआत प्रारंभ सहित । आदि सहित = सादि । लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता है कि.. आत्मा के गुण उत्पन्न हुए । निश्चय नय की दृष्टि से आत्मगुण आत्मा में अनादि काल से है ही और भावि में भी अनन्त काल तक निश्चित रूप से रहने ही वाले हैं। यदि ऐसा न मानें तो एक दिन आत्मा को गुणरहित निर्गुण मानने की आपत्ति आएगी। जबकि गुणरहित संसार में एक भी जड या चेतन ऐसा कोई द्रव्य ही नहीं है जो गुणरहित है । जड द्रव्य में जड के गुण हैं। और चेतन द्रव्य में चेतन के ज्ञानादि गुण भरे पड़े हैं। जड में वर्णगंध-रस-स्पर्शादि के गुण भी अनेक होते हैं। जब सर्वथा गुणरहित निर्गुण संसार का छोटा-बडा एक भी द्रव्य नहीं है तो आत्मा कहाँ से गुणरहित होगी?
जी नहीं, कदापि नहीं। इसलिए ... अनादि-अनन्तकाल आत्मा सदा ही सगुण-गुणवान रहती है। सिर्फ अन्तर इतना ही है कि कर्म के आवरण से आवृत्त रहती है। जैसे बादलों से ढका हुआ सूर्य भी अपने प्रकाश (तेज) को कहाँ छोड देता है ? ठीक उसी तरह अनन्त गुण आत्मा की सत्ता में होते हुए भी कर्म के आवरण से दबी हुई आत्मा भी गुणों के अस्तित्ववाली ही है । गुण न तो बाहर से आते हैं और न ही नए उत्पन्न होते हैं। ये तो जो होते हैं वे प्रगट होते हैं । अतः सादि-शब्द से आदि शुरुआत होने का तात्पर्य आज ही प्रगट हुए हैं। इसकी ३ प्रक्रिया है। १) क्षय + उपशम = क्षयोपशम = जितने अंश में कर्म का क्षय हुआ हो और शेषांश का उपशमन हुआ हो वह एक प्रक्रिया। तथा २) सिर्फ उपशमन हो कर्मों का शमन-दब जाना हो वह दूसरी प्रक्रिया । इसमें कर्म का क्षय नहीं होता है लेकिन दब जाते हैं । अतः उस कर्म की प्रकृति सत्ता में जरूर पडी हुई रहती है लेकिन... दबी हुई शान्त रहने से गुणों का उतने काल तक प्रगटीकरण दिखाई देगा। लेकिन जैसे ही उस उपशान्त कर्म का प्रादुर्भाव हुआ कि... पुनः गुण दब जाएगा और कर्म का उदय गिरा देगा। उपशम श्रेणी का ही नियम यहाँ भी लगता है।
तीसरी प्रक्रिया संपूर्ण क्षय की है । क्षायिक भाव की इस प्रक्रिया में जिन कर्मों का सर्वथा जडमूल से क्षय हो जाएगा उन उन कर्मों से दबे हुए आत्मा के गुण प्रगट हो जाएंगे। यह प्रादुर्भाव शाश्वत नित्य रहता है। ये गुण पुनः कभी भी कर्म से आवृत्त नहीं होंगे। क्योंकि कर्म नाममात्र या अंशमात्र भी सत्ता में नहीं है । तथा उदय में भी नहीं है । और नया बांधने का भी सवाल ही नहीं है।
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आयामिक विकास यात्रा