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पतनावस्था के गुणस्थान
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उपशम श्रेणी का शमक साधक निश्चित ही गिरनेवाला है । अन्य किसी गुणस्थान पर गिरे या न भी गिरे... परन्तु ११ वे गुणस्थान पर आकर तो अवश्य ही गिरता है गिरते गिरते २ - ३ प्रक्रिया है वह भी पीछे लिखी है। गिरनेवाला... सीधा भी गिरता है और क्रमशः एक–एक गुणस्थान भी गिरता है । १०, ९, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २ और पहले गुणस्थान पर भी आ जाता है । गिरते गिरते किस क्रम से गिरेगा उसका कोई ठिकाना नहीं है । फिर भी गिरते हुए अनुक्रम से ७ वे और छट्ठे गुणस्थान पर तो सभी आते ही हैं । यदि वहाँ स्थिर हो जाय तो तो ठीक। लेकिन अध्यवसायों का कोई ठिकाना ही नहीं है । और नीचे गिरे तो ५ वे गुणस्थान पर आकर रुक सकता है । यह तो श्रावक का देशविरति का गुणस्थान है । यदि यहाँ भी स्थिर होकर न रुके तो ४ थे गुणस्थान पर भी आकर रुक सकता है । यहाँ श्रद्धालु सम्यक्त्वी बनकर रह सकता है । और यदि यहाँ भी न रुके तो हो सकता है कोई तीसरे गुणस्थान पर होते हुए १ ले मिथ्यात्व के गुणस्थान पर जाता है, और कोई २ रे गुणस्थान पर होते हुए १ ले गुणस्थान पर जाता है । १ ला गुणस्थान मिथ्यात्व का है ।
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यह उत्थान - पतन का सारा आधार एक मात्र अध्यवसायों पर है । अध्यवसायों का कोई ठिकाना नहीं रहता । कब किसके अध्यवसाय बनेंगे, शुद्ध अच्छे होंगे? और कब किसके अध्यवसाय बिगडेंगे ? कुछ भी कहा नहीं जा सकता ।
विषय सम्बन्ध के आधार पर ३ रे और २ रे गुणस्थान का वर्णन जो पहले नहीं किया था उसका वर्णन यहाँ करते हैं
३ रा मिश्रदृष्टि गुणस्थान
मिश्रकर्मोदयाज्जीवे, सम्यग् मिथ्यात्वमिश्रितः । यो भावोऽन्तर्मुहूर्तस्या- तन्मिश्रस्थानमुच्यते ॥ १३ ॥
मिश्रमोहनीय कर्म के उदय से जीव को जो सम्यक्त्व और मिथ्यात्व इन दोनों के मिश्रण से जो भाव उत्पन्न होते हैं उस मिश्रित भाव को तीसरा मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं। कर्मग्रन्थ का कर्म का विषय आपके ख्याल में होगा ? मोहनीय कर्म के जो २ विभाग
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आध्यात्मिक विकास यात्रा