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________________ बंध स्थिति भी काफी दीर्घ होती है। दूसरी तरफ अबाधा काल की स्थिति के परिपक्व होने पर वह कर्म उदय में आकर अपना सुख-दुःख जो भी देना है वैसा फल दिखाकर या देकर फिर ओझल हो जाएगा। लेकिन इससे कैसे मानना कि वह कर्म संपूर्ण क्षय हो गया या नहीं? भगवान महावीर की आत्मा ने तीसरे मरीचि के भव में जिस नीचगोत्र कर्म को उपार्जित किया... उसके पश्चात् वह कर्म अपने आबाधा काल की परिपक्वता के कारण उदय में आया और बीच के कई जन्मों तक उस कर्म ने अपनी असर बरोबर दिखाई । ५, ६,८, १०, १२, १४ इस तरह ६ भव नीच गोत्र में याचक कुल में करने पडे । इसके बाद भी वह कर्म समूल सर्वथा क्षय नहीं हुआ। पुनः जितना अंश उस कर्म का अवशिष्ट था वह २७ वे जन्म में प्रवेश करते ही उदय में आ गया और २६ वाँ जन्म दसवें प्राणत नामक देवलोक में से २० सागरोपम की आयुस्थिति पूर्ण करके उतर कर आते ही देवानंदा की कुक्षी में फेंक दिया। परिणाम स्वरूप ८२ दिन देवानंदा की कुक्षी में बिताने ही पडे । बस, अब इस कर्मविशेष का संपूर्ण सर्वथा समूल नाश हुआ। निर्जरा हुई। आत्मा एक कर्म से सर्वथा मुक्त हो गई । लेकिन अन्य कई कर्म अभी भी सत्ता में पड़े हैं। इस तरह प्रत्येक बंधा हुआ कर्म उदय-उदयावलिका में आकर अपना फल देकर स्थिति काल की पूर्णता-समाप्ति के पश्चात् तो आत्मा मुक्त होती ही है । लेकिन संपूर्ण रूप से सर्व कर्मों की निर्जरा होनी चाहिए, तब आत्मा संपूर्ण रूप से मुक्त बनती है । अन्यथा थोडी थोडी निर्जरा होने से मुक्ति संभव नहीं होती है । दूसरी तरफ जैसे ही हम थोडी सी निर्जरा करते हैं कि... इतने में दूसरे पाप कर्म भी तो होते हैं। उनका भी बंध तो होता ही है । पुनः कर्मबंध से आत्मा बंदिस्त होती जाती है । अतः आत्मा को अपनी कर्मक्षय करने की शक्ति बढानी चाहिए। जिससे अपेक्षित धारणानुसार कर्म निर्जरा हो सके । करण विशेष आत्मवीर्य आत्मा के वैसे अनन्त गुण हैं । इनमें मुख्य आठ गुण प्रधान हैं । इन ८ गुणों में एक अनन्त वीर्य गुण है । वीर्य शब्द यहाँ पर शक्तिवाचक हैं। आत्मा की शक्ति .. असीम, अमाप और अनन्त है, अकल्प्य है । वर्धमान महावीर जिस दिन-चैत्र शुदि १३ के दिन इस धरती पर जन्मे आत्मा क्षपक श्रेणि के साधक का आगे प्रयाण ११०१
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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