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________________ समाधि ध्यान धारणा प्रत्याहार प्राणायाम आसन नियम यम यम से प्राणायाम तक के चार भाग कायिक प्रधानतावाले हैं, और प्रत्याहार से समाधि तक के शेष चार मनोयोग की प्रधानतावाले हैं । इस अष्टांग योग के महल में प्रवेश करने का द्वार-यम है । यम-नियम अंगीकार करके ही आगे के अंगों में प्रवेश करना चाहिए। योगशास्त्र में जैसा है उसी क्रम से सुव्यवस्थित रीति से आचरण करने पर ही सही विकास होता है। वर्तमान युग में कई ऐसी विचारधारावाले हैं कि यम-नियम पालने की कोई आवश्यकता ही नहीं है- बस, सीधे ही...आसन-प्राणायाम ही करले और समाधि में पहुँच जाएँ । इन ८ अंगों में वर्तमान काल में ८० फीसदी लोग सिर्फ आसन का ही अभ्यास ज्यादा करते हैं । यही पसंद करते हैं। क्योंकि वे इसे एक प्रकार का शारीरिक व्यायाम मानकर शरीर की सुदृढता के लिए विशेष उपयोगी समझकर भिन्न-भिन्न आसन सब कर लेते हैं। लेकिन यम-नियम क्या है इनका नाम मात्र भी संबंध नहीं रखते हैं। आगे प्राणायाम का आचरण करनेवाले भी २०% मिल जाते हैं। प्राणायाम भी शारीरिक लाभकारक है । उस तरह आसन और प्राणायाम दोनों को ही रोगनिवारक और स्वस्थता का लाभकारक मान कर वर्तमान काल में उपयोग करनेवाले सेंकडों लोग हैं, परन्तु आसन चित्त की स्थिरता के लिए भी है, और प्राणायाम भी चित्त को एकाग्र करने के लिए है यह लक्ष्य ही नहीं है । अतः जैसे प्राण निकल जाने के पश्चात् मृत शरीर को पालना-पोसना कैसा लगता है ठीक उसी तरह ध्यान के सहायक, चित्त की एकाग्रता करानेवाले ये आसन-प्राणायाम अंग हैं। इनका विचार मात्र भी न करते हुए, इस तरह लक्ष्यविहीन शारीरिक लाभ का विचार मात्र करके आचरण करना यह कहाँ तक लाभकारी सिद्ध होगा? क्या यम-नियम भी चित्त की एकाग्रता और ध्यान समाधि के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं कि नहीं? इसके उत्तर में स्पष्ट कहते हैं कि.. यम के विरुद्ध अयम तथा नियम के १०७२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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