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________________ अढाई द्वीपान्तर्गत स्वरूप तन्मध्ये मेरुनाभित्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो-जम्बूद्वीपः ।। ३-९॥ इन अढाई द्वीप के मध्य में केन्द्र में जंबू द्वीप है । जो १ लाख योजन विस्तार वाला है । इस जंबूद्वीप के केन्द्र में–१ लाख योजन की ऊंचाई वाला मेरु पर्वत है । नाभि शब्द यहाँ मध्य, केन्द्र अर्थ में है । यह मेरू पर्वत ३ लोक में विभक्त है.। १०० योजन अधोलोक में + १८०० योजन तिर्छा लोक में, + और ९८१०० योजन = १ लाख योजन है। इसमें से १००० योजन जमीन में, + और ९९००० योजन बाहर आकाश में है । इस तरह कुल मिलाकर १ लाख योजन है । यह चौडाई के विस्तार में १०००० योजन जमीन तल पर नीचे ही चौडा है । घेराव है। ऊपर की ऊँचाई में प्रत्येक ११ योजन के बाद १ योजन प्रमाण चौडाई का विस्तार घटता जाता है । इस तरह ऊपरी चोटी तक जाते जाते अन्त में-१००० योजन की चौडाई चोटी–शिखर भाग पर है । जंब द्वीप के नीचे अधो दिशा में ९०० योजन तक तिर्खा लोक है। उसके बाद अधोलोक आता है। जबकि मेरूपर्वत १००० योजन जंबूद्वीप पृथ्वी से नीचे है । अतः स्पष्ट होता है कि ९०० योजन तिर्छा लोक में है और १०० योजन अधोलोक में इसका मूल है । गोलाकार पृथ्वी वर्तमान विज्ञान की भूगोल ने पृथ्वी को अण्डाकार गोल बताई है। जबकी सर्वज्ञ भगवन्तों ने इसे थाली आकार की गोल बताई है। यह पूरा जंबूद्वीप १ लाख योजन के विस्तारवाला है। अर्थात् केन्द्र के मेरुपर्वत से किनारे की परिधि तक ५०००० योजन का व्यास है। ५०००० योजन के रेडियस के इस विशाल जंबूद्वीप के पूर्वी से पश्चिमी और उत्तर से दक्षिणी किनारे तक का अन्तर १ लाख योजन विस्तार होता जगत् का स्वरूप ३७
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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