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________________ योजनों की चौडाई के विस्तार में फैले हुए असंख्य द्वीप समुद्र है जिनकी स्थापना इस प्रकार है /////////// १५४३२१०/९/८७६५४/३/२/१२३४५६७८/९/१०११/१२/१३/१४/१५ स. स. स. स. स. स. स. स. स. स. स. स. स. स. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. द्वी. २५६ ६४ १६ ४ १ ४ १६ ६४: २५६ ५१२ १२८ ३२ ८ २ ला. २ ८ ३२ १२८ ५१२ यो. इस तरह संपूर्ण गोलाकार वृत्त आकृति में इन द्वीपों समुद्रों की रचना है । एक द्वीप बीच में फिर उसके चारों तरफ गोलाकृति में समुद्र फिर द्वीप-फिर समुद्र इस तरह ये असंख्य की संख्या में असंख्य द्वीप समुद्र हैं । जो कि माप-प्रमाण में पहले से दुगुने-दुगुने हैं । अन्त में अन्तिम समुद्र स्वयंभूरमण समुद्र है । बस, इसके बाद बाई-दाईं दिशा में लोक का अन्त आता है । लोकान्त के बाद अलोक की स्थिति है। मनुष्य क्षेत्र-अढाई द्वीप तिळ लोक क्षेत्र के असंख्य द्वीप-समुद्रों के बीच २ ।। द्वीप समुद्र परिमित मनुष्य क्षेत्र है। यद्यपि इन २॥ द्वीप-समुद्रों में तिर्यञ्च गति के पशु-पक्षियों जलचर-स्थलचर ५/४/३/२/ १ २ ३ ४ ५ पु. का. धा. ल. ज. ल. धा. का. पु. आदि सभी जीवों की स्थिति है। लेकिन इनकी स्थिति तो असंख्य द्वीप-समुद्रों में सर्वत्र है। परन्तु मनुष्यों की स्थिति सिर्फ... २ ॥ द्वीप समुद्रों के सीमित क्षेत्र में ही है । बस, इसके बाहर नहीं है । उसमें भी पहले जंबू द्वीप में, दूसरे धातकी खण्ड में, और तीसरे पुष्करार्ध द्वीप में ही मनुष्यों की बस्ती है । पुष्कर द्वीप १६ लाख योजन के विस्तार वाला है । इसके बीचो बीच वृत्ताकार मानुषोत्तर पर्वत है। जिससे इस पुष्कर द्वीप के दो भाग पडते हैं । ८ लाख योजन केन्द्र की तरफ जगत् का स्वरूप ३५
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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