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________________ पं. अरुणविजय गणिवर्य महाराज (राष्ट्रभाषा रत्न साहित्य रत्न न्यायदर्शनाचार्य) आप१८ वर्ष की आयु में ही संसार का त्याग करके महाभिनिष्क्रमण के पंथ पर प्रयाण कर चारित्रधर्म आर्हती दीक्षा स्वीकार करके अणगार जैन साधु बने। आपने वर्धा से राष्ट्रभाषा रत्न तथा प्रयाग से साहित्य रत्न की उपाधियाँ प्राप्त की। भारतीय विद्या भवन, बंबई से संस्कृत भाषा के माध्यम से दर्शनक्षेत्र में न्याय दर्शनाचार्य की उपाधि प्राप्त की। विविध भाषाओं में लेखन एवं भाषण का उभय प्रभुत्व आपने प्राप्त किया है। स्व-पर शास्त्र में पारंगत पूज्यश्री ने महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु की धरती पर विचरण करके अनेक यशस्वी चातुर्मास किए हैं। शिक्षण शिविरों के माध्यम से युवा पीढी को धर्म सम्मुख कराने में आप विशेष रुचि रखते हैं। सचित्र प्रवचन आपकी विशेषता है। आप जैन शासन के माने हुए विद्वान एवं कुशल व्याख्याता तथा सिद्धहस्त लेखक भी हैं। आपने अनेक संस्कृत विद्वत् परिषदों का आयोजन किया है। आपके मार्गदर्शन एवं प्रेरणा से श्री हथूण्डी राता महावीर स्वामी तीर्थ का जीर्णोद्धार एवं सर्वांगिण विकास हो रहा है। वहीं पर श्री महावीर वाणी समवसरण मंदिर व शास्यविशारद श्वरजी म. सा. के पट्टप्रभावक प. श्वरजी म. सा. के पट्टधर पू. आच जी म. सा. के गुरुबंधु पू. आचार्यदेव श्रीमद् / 575 ता. के आप विद्वान शिष्य रत्न हैं।
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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