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दोनों का मिश्र भाव रहता है । क्योंकि श्रद्धा का अभाव है। पाँचवें अनाभोगिक मिथ्यात्व में जीव, जो किसी प्रकार का धर्म या दर्शन पाये ही नहीं है, ऐसे एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय आदि तक के जीवों में, श्रद्धा के अभावरूप मिथ्यात्व है । इस तरह मिथ्यात्व के उपरोक्त प्रमुख पाँच भेद बताए गए हैं । शास्त्रकार महर्षियों ने इस मिथ्यात्व को आत्मा का महाशत्रु बताया है। अनेक कर्मबंध की यह मूल जड़ है। अतः मिथ्यात्व दशा में जीव बड़े भारी कर्मों को बांधता है । अतः मिथ्यात्व से बचने के लिए मिथ्यात्व का स्वरूप भिन्न-भिन्न प्रकारों से, अनेक रीति से बताया है, जिसमें दस प्रकार की संज्ञाएं, अभिग्रहिक आदि मुख्य पाँच भेद, लौकिक-लोकोत्तर भेद से ६ प्रकार का और बताया है, जिसका विवेचन आगे करते हैं। किस जीव को कौनसा मिथ्यात्व होता है? - संसार में भव्य अभव्य और जातिभव्य (दुर्भव्य) आदि मुख्यतः इन तीन प्रकार के जीवों में किस जीव में किस प्रकार का मिथ्यात्व रहता है इस विषय में धर्म परीक्षा ग्रन्थकार कहते हैं कि
एतच्च पञ्चप्रकारमपि मिथ्यात्वं भव्यानां भवति। अभव्यानां त्वभिग्रहिकमनाभोगं चेति द्वे एव मिथ्यात्वे स्याताम् । न त्वनभिग्रहिकादीनि त्रीणि, अनभिग्रहिविच्छिन्नपक्षपाततया मलाल्पतानिमित्तकत्वाद् अभिनिवेशिकस्य च व्यापनदर्शननियतत्वाद् सांशयिकस्य च सकम्पप्रवृत्तिनिबन्धनत्वाद् अभव्यानां च बाधितार्थे निष्कम्पमेव प्रवृत्तेः ॥
धर्मपरीक्षा श्लोक ८ की टीका उपरोक्त दर्शाए हुए पाँचों प्रकार के मिथ्यात्व जीवों में होते हैं । एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव, तथा देवता, नारकी, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सभी प्रकार के जीव इन पाँच प्रकार के मिथ्यात्व से ग्रस्त रहते हैं । वैसे किसी भी जीव में एक साथ पाँचों प्रकार के मिथ्यात्व होते नहीं हैं । संभवित नहीं हैं । एक प्रकार के जीव में एक प्रकार का मिथ्यात्व हो सकता है । एक प्रकार का मिथ्यात्व जाने के पश्चात् दूसरे प्रकार का मिथ्यात्व आ सकता है। उदा.के लिए अनाभोग प्रकार का मिथ्यात्व जाय और अभिग्रहिक मिथ्यात्व का उदय हो ऐसा हो सकता है । उसी तरह... अभिग्रहिक के जाने के बाद अनभिग्रहिक का उदय हो सकता है तथा अनभिग्रहिक के जाने के पश्चात् सांशयिक का उदय हो सकता है । इन चार प्रकारों में परस्पर परिवर्तन हो सकता है। परन्तु एक अभिनिवेशिक मिथ्यात्व का उदय तो सम्यग्दर्शन प्राप्त होने के बाद-वमन होने के बाद अर्थात् चला जाने के बाद यह
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आध्यात्मिक विकास यात्रा