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नमस्कार जरूर किया गया है, परन्तु वह नमस्कार सशर्त किया गया है। भवबीजांकुरजनना रागादयो क्षयमुपागता यस्य । अर्थात् भव-संसार के बीजरूप राग-द्वेष आदि का जिसने सर्वथा क्षय कर दिया है ऐसे नामधारी चाहे जो भी कोई हो, भले ही वे ब्रह्मा हो, विष्णु हो, हर हर महादेव हो, या जिनेश्वर भगवान हो, उन सब को मेरा नमस्कार हो । इसमें सब भगवान को एक मानकर नमस्कार नहीं किया गया है, परन्तु यदि वे सभी राग-द्वेषादि आभ्यंतर कर्म-शत्रुरहित हो तो उन्हें मेरा नमस्कार हो, नाम से भले चाहे जो भी कोई हो । जैन धर्म में नाम की महिमा नहीं है, परन्तु गुणों की महिमा है । अतः जैन धर्म व्यक्तिवाची या व्यक्तिपरक नहीं है। यह गुणवाची या गुणपरक है । नमस्कार महामन्त्र में किसी भगवान का नाम नहीं लिया गया है, और न ही नामवाची मन्त्र बनाए गए हैं । इसलिए “नमो महावीराणं" "नमो आदीश्वराणं" आदि मन्त्र नहीं दिये गए हैं। वैसे ही “नमो भगवन्ताणं" आदि ऐसी वाक्यरचना भी नहीं बनाई गई है। परन्तु “नमो अरिहंताणं” “नमो सिद्धाणं" आदि महान अर्थवाले मन्त्रपद दिये गये हैं। इसलिए आदीश्वर, महावीरस्वामी आदि चौबीस तथा भूतकाल आदि अनन्त भगवानों का समावेश इस अरिहंत-सिद्धपद में हो जाता है । अतः नमो महावीराणं आदि पदों की अपेक्षा नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं आदि पद अनेकगुने अधिक महानार्थक एवं सार्थक हैं । आदीश्वर एवं महावीर स्वामी आदि भी भगवान कब कहलाए? जब वे अरिहंत बने तब, अर्थात् काम, क्रोध मान, माया, लोभ, राग, द्वेषादि सर्व आत्मशत्रुओं का क्षय करके कर्मरहित वीतराग बने तब वे अरिहन्त भगवान कहलाएं । इसलिए स्तुति में इसे शर्तपूर्वक नमस्कार किया गया है कि- यदि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर-महादेव आदि कोई भी हो, परन्तु यदि वे भव-बीजरूप राग-द्वेषादि कर्म से रहित हो तो ही उन्हें नमस्कार हो, अन्यथा नहीं। भक्तामरस्तोत्र की स्तुति में मानतुंगसूरि महाराज ने बुद्ध, शंकर, धाता-विधाता और पुरुषोत्तम आदि शब्दों का प्रयोगव्याकरणानुसार व्युत्पत्तिजन्य अर्थ लेकर जिनेश्वर भगवान को ही बुद्ध, शंकर, विधाता एवं पुरुषोत्तम आदि नामों से सार्थक सम्बोधित किया है।
इस तरह तर्क-युक्ति बुद्धिपूर्वक विचार किया जाय तो “सब भगवान एक हैं" ऐसी अनभिग्रहिक मिथ्यात्वी की दृष्टि एवं मान्यता लेकर उपरोक्त स्तुतियाँ नहीं की गई हैं । तुलनात्मक एवं परीक्षात्मक बुद्धि से सही-सत्य समझते हुए ऐसी स्तुतियाँ महापुरुषों ने की है, वे महान सम्यग्दर्शनी थे । अतः सम्यक्त्वी तुलना एवं परीक्षा करके सब भगवान में से वास्तविक सही भगवान ढूंढ निकालने में परिश्रम करता है, जबकि मिथ्यात्वी के लिए “सब भगवान एक है", यह कहना बिना बुद्धि के उपयोग के बड़ा आसान है।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा