SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोचिए, इन तीनों में ज्यादा नुकसानकारक कौन होता है ? पहले दो सरल हैं । उन्होंने अपने अज्ञान का निवारण करने के लिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए दिल और दिमाग के दरवाजे खुल्ले रखे हैं । जब भी मौका मिले तब ज्ञान प्राप्त करने के लिए यदि उसे समझाया जाय तो वह तैयार रहता है । परन्तु इन दोनों की अपेक्षा मिथ्यात्व हजारों गुना ज्यादा खतरनाक होता है । यह अभिनिवेशभाववाला कदाग्रह - दुराग्रह की पक्कडवाला होता है । अतः जल्दी बदलने के लिए तैयार नहीं है। दिल-दिमाग के रास्ते सब बंद करके रखे हैं । मिथ्यात्व का आधार-कषाय क्रोध - मान-माया और लोभ इन चार कषायों में से मिथ्यात्वं का आधार किस पर है ? मिथ्यात्व किसके मिश्रण से बनता है ? इसके उत्तर में उदयरत्नजी महाराज सज्झाय की पंक्ती में स्पष्ट कर रहे हैं- “माया मां मिथ्यात्व रे प्राणी म करीश माया लगार" माया-कपट की वृत्ति में मिथ्यात्व रहता है । यह माया के घोल से बनता है । जैसे रोटी किसमें से बनती है ? गेहूँ के आटे में से । इस तरह मिथ्यात्व का आधार माया-कपट की वृत्ति रखना । किसी के ठगने का कार्य करनेवाला मायावी होता है । वह जानता है कि सच्चा मार्ग क्या है फिर भी उसे उल्टा ठगता है। कपट वृत्ति से सीधा व्यवहार करने के बदले उल्टा व्यवहार करता है वह मायावी है। ठीक इसी कषाय में से मिथ्यात्व का जन्म होता है । क्रोध आवेशधारक – गुस्सा करनेवाला जरूर होता है । वह मार-पीट भी कर सकता है । परन्तु क्रोध के कारणों में कई बार सत्य का भी आधार होता है । सच्चाई के लिए भी गुस्सा किया जाता है मान-अभिमान करनेवाला मानी - अभिमानी होता है । उसे उपनी सत्ता - पद से मतलब होता है । वह भी कई बार सीधे रास्ते चलता है । लेकिन ... मायावी सीधा चल ही नहीं सकता है । वह वक्र टेढा चलता है । लोभ वृत्तिवाला लोभी अपने को कुछ लाभ हो, मिले उसके लिए प्रयत्न करता है । वस्तु या पैसे से उसको मतलब है । हाँ, वह लोभ के लिए भाव बढा कर जरूर कहता है । इसलिए झूठ जरूर लगता है । परन्तु माया कपट नहीं करता है । इन चारों प्रकार के कषायों को करनेवालों में ... मायावी- -कपट वृत्तिवाला माया -छल करनेवाला मायावी सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। मायावी ठग वृत्ति से दूसरों को ठगता है । संसार में तो किसी भी वस्तु आदि के लिए माया-कपट की जा सकती है। लेकिन ज्ञान के क्षेत्र में भी माया-कपट की वृत्ति करके किसी को ठगा जा सकता है। सामनेवाली व्यक्ती को आत्मा-परमात्मा मोक्षादि विषयों " मिथ्यात्व" प्रथम गुणस्थान ३६९
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy