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मिथ्या दृष्टि
__ जैसे एक व्यक्ती को कमला (पीलीया) रोग हो गया हो तो कमलाग्रस्त उस रोगी को सब पीला ही पीला दिखता है । बस पित्तज कमलारोग के कारण दृष्टि ही वैसी बन चुकी है। ऐसी स्थिति में उसको जो भी दिखाई देगा वह सब दोषग्रस्त दिखाई देगा। यदि वह व्यक्ती समझदार हो तो उस कमलारोग की स्थिति में वैसे देखे गए पदार्थों को वैसी मान न ले । अन्यथा जैसा दिखाई दिया वैसा ही यदि मानकर मान्यता भी वैसी बना लेगा तो बडा अनर्थ हो जाएगा। क्योंकि रोग तो थोडे दिनों का ही है। रोग तो कल मिट भी जाएगा। लेकिन वैसी मान्यता बनाकर माननेवाला व्यक्ती अपनी मान्यता को ज्ञान की धारा को, विश्वास की धारा को वैसी विपरीत वृत्ति वाली मानकर कितने लम्बे काल तक परेशान होगा? जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकते हैं । शरीर का रोग जाना आसान है परन्तु मान्यता का यह आंतरिक रोग किसी–दवाई या इंजेक्शन से जाना संभव ही नहीं है । शायद कमला रोग तीव्र बनकर मृत्यु भी नीपजा दे तो भी एक जन्म बिगडेगा। लेकिन ... विपरीत मान्यता का मिथ्यात्व का रोग सेंकडों जन्म बिगाड देगा।
'जिस तरह काले रंग के चश्मे (गोगल्स) पहननेवाले व्यक्ती को सफेद कपडा, सफेद दूध भी काला दिखाई देने लगता है । वस्तु काली न होते हुए भी काली-श्याम दिखती है। इसमें दृष्टिदोष महत्वपूर्ण कारणरूप है। इसी तरह मिथ्यात्व की भी ऐसी ही स्थिति है । मिथ्यात्वी जीव की मिथ्यादृष्टि ऐसी ही होती है । कमला रोग वाले रोगी की आँखों से पित्त के कारण पीला दिखता है । काले चश्मे के कारण काला-श्याम दिखता है । ठीक वैसे ही मिथ्यात्व के कारण विपरीत मानने की वृत्ति उस मिथ्यात्वी जीव की आँखों में उभर आती है, जिससे वैसी दृष्टि बन जाती है और वह उसी तरह सब विपरीत देखता है । जिसका अस्तित्व है वे पदार्थ भी इसे नहीं दिखते हैं । जो जैसा है, जिस स्वरूप में है, वैसा नहीं दिखता है । है उससे विपरीत स्वरूप का दिखाई देता है।
___ “यथा दष्टि तथा सष्टि" जैसी दष्टि बनती है वैसी सृष्टि बनती है । इस नियमानुसार व्यक्ती की अपनी दृष्टि के आधार पर सृष्टि उसके लिए वैसी बनती है। वह मिथ्यात्वी जीव उसे वैसी मानता है । अतः जगत् का स्वरूप, संसार की यह सृष्टी जैसी है वैसी है ही... परन्तु इसे देखनेवाले भिन्न-भिन्न वृत्ति के लोगों ने भिन्न-भिन्न रूप में कहा । वर्णन किया। अतः सृष्टि का महत्व नहीं है । क्योंकि वह तो जैसी है वैसी है ही...उसमें तो कोई परिवर्तन होनेवाला नहीं है लेकिन उसे देखनेवाले और देखकर उसका वर्णन करनेवाले पर बहुत बडा आधार रहता है । अतः यदि देखने वाला सम्यग् दृष्टि जीव है तो निश्चित ही वह सृष्टि
"मिथ्यात्व” – प्रथम गुणस्थान
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